वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एंफीथिएटर ग्राउंड में चल रहे काशी तमिल संगमम् में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी द्वारा काशी और तमिलनाडु के 90 प्राचीन मंदिरों और देवी-देवताओं…
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एंफीथिएटर ग्राउंड में चल रहे काशी तमिल संगमम् में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी द्वारा काशी और तमिलनाडु के 90 प्राचीन मंदिरों और देवी-देवताओं के मूर्तियों की एग्जीबिशन लगाई गई है। इसमें वाराणसी के 29 और 61 मंदिर तमिलनाडु के हैं। एग्जीबिशन में तमिलनाडु के मंदिरों की भव्यता और आर्किटेक्चर देखते ही बनती है। वहीं, काशी की दुर्लभ देव मूर्तियां लोगों को आकर्षित कर रहा हैं।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा यह प्रदर्शनी लगाई गई है। जिसमें तमिलनाडु और काशी दोनों जगहों के प्रसिद्ध मंदिरों का छायाचित्र लगाया गया है। कुल 90 छायाचित्र प्रदर्शित किए गए हैं। जिसमें लगभग 61 छायाचित्र तमिलनाडु के और 29 काशी के हैं। काशी और तमिलनाडु का बड़ा ही गहरा नाता रहा है। और उस संबंध के केंद्र में भगवान शिव हैं।
काशी भगवान शिव की सबसे प्यारी नगरियों में से एक है, तमिलनाडु के भी अधिकतर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इन दोनों जगहों के मंदिरों का छायाचित्र यहां लगाया गया है। काशी तमिल संगमम् के सर्वाधिक केंद्र में उन्होंने मंदिरों के आकृति को लेकर बताया कि दोनों तरफ दो तरह के मंदिर बनते हैं दक्षिण भारत के जो मंदिर है वह मूल रूप से द्रविड़ परंपरा के हैं जिन्हें द्रविड़ शैली कहा जाता है। और उत्तर भारत के जो मंदिर हैं वह नागर शैली के मंदिर हैं।
नागर शैली के मंदिरों में विशेषता होती है कि उनका जो गर्भ गृह के ऊपर का शिखर होता है वह सबसे महत्वपूर्ण और विशाल होता है । जबकि द्रविड़ संस्कृति के मंदिरों में द्रविड़ शैली के मंदिरों की विशेषता होती है कि उनका प्रवेश द्वार सबसे विशाल होता है और उसमें एक खास प्रकार की नक्काशी होती है। उन्होंने कहा कि देवता एक ही है लेकिन अस्थान भिन्नता के कारण जो निर्माण शैली है वह दोनों की अलग-अलग है।
इस संगमम् में सबसे महत्वपूर्ण बात है एक ही देवता को समर्पित मंदिर कैसे-कैसे क्षेत्रीय विविधता के कारण अलग-अलग बनते हैं और उनका एक अपना अलग संस्कार है। वह देखने को मिल रहा हैं।