वाराणसी के वेदांत ने ली Green Comet की दुर्लभ तस्वीरें, 50 हजार साल बाद दिखा ये धूमकेतु
वाराणसी। 50 साल बाद आसमान में ग्रीन कॉमेट दिखाई दिया, जिसकी तस्वीरें वायरल हो रही है। इसे वाराणसी में 10वीं कक्षा के छात्र वेदांत पांडेय ने ली है, जो बड़ा…
![वाराणसी के वेदांत ने ली Green Comet की दुर्लभ तस्वीरें, 50 हजार साल बाद दिखा ये धूमकेतु वाराणसी के वेदांत ने ली Green Comet की दुर्लभ तस्वीरें, 50 हजार साल बाद दिखा ये धूमकेतु](http://varanasitoday.com/wp-content/uploads/2023/02/New-Project-31.jpg)
वाराणसी। 50 साल बाद आसमान में ग्रीन कॉमेट दिखाई दिया, जिसकी तस्वीरें वायरल हो रही है। इसे वाराणसी में 10वीं कक्षा के छात्र वेदांत पांडेय ने ली है, जो बड़ा होकर एस्ट्रोनॉट बनना चाहता है। यह एक दुर्लभ धूमकेतु (कॉमेट या पुच्छल तारा ) C-2-22E3 ZTF है, जिसे धूमकेतु को ग्रीन कॉमेट कहा जा रहा है। वेदांत ने टेलीस्कोप में एडॉप्टर से मोबाइल को जोड़कर ये दुर्लभ तस्वीरें निकाली है, जो काफी शानदार है।
आज भी आसमान में दिखाई देगा
इस धूमकेतु का रंग हरा है और एक लंबी सी पूंछ है। कल रात में 10 बजे से 1 बजे तक आसमान में देखा जा रहा है। आज भी रात में 10 से 1 बजे तक ग्रीन कॉमेट का नजारा आसमान में ले सकते हैं। वेदांत ने बताया कि धूमकेतु को फोन की स्क्रीन पर दिखाना आसान नहीं था।
50 हजार साल बाद देखेन को मिला
BHU के खगोल वैज्ञानिक प्रो. अभय कुमार ने बताया कि यह कॉमेट 50 हजार साल बाद हमें देखने को मिला। अब उतना पहले का कोई रिकॉर्ड तो होगा नहीं, मगर आगे यह कब नजर आएगा इसका पता नहीं। दरअसल, यह कॉमेट आकाश में सूर्य का चक्कर लगाता है। इसका ऑर्बिट इतना ज्यादा बड़ा है कि यह हमारे सौर मंडल की सीमाओं को भी क्रॉस कर जाता है। इस बार यह अपने सौर मंडल और पृथ्वी के पास से गुजर रहा है।
जानें क्यों दिखता है हरे रंग का
इस धूमकेतु का हरा रंग सोलर विंड और कॉमेट के पत्थरों के टकराने की वजह से बन रहा है। प्रो. अभय ने कहा कि जब कॉमेट के ये पत्थर सोलर विंड से टकराते हैं तो काॅर्बन मोनो ऑक्साइड और कॉर्बन डाईक्साइड बनता है। इसी की वजह से इस धूमकेतु का रंग हरा-हरा नजर आता है। धरती के बनने में इन कॉमेट्स का महत्व काफी ज्यादा है।
एस्ट्रोनॉट बनने का है सपना
वाराणसी के सरायनंदन स्थित ग्लोरियस पब्लिक स्कूल के छात्र वेदांत, जो कि 16 साल के है। वेदांत के पिता जितेंद्र बिजनेस मैन हैं। वह खोजवां में रहते हैं। पिछले साल ही माता का निधन हो गया था। घर में दो बहने हैं। वेदांत ने बताया, मेरा बचपन से ही खगोल में इंट्रेस्ट था। एस्ट्रानॉट बनने का सपना देखता हूं। नासा की वेबसाइट से जानकारियां लेता रहता हूं। एक दिन नासा की वेबसाइट पर मुझे इस कॉमेट के बारे में जानकारी मिली थी। 28 जनवरी से मैं इस कॉमेट की तलाश में लग गया था। कई बार फोटो नहीं ले सका। इसके बाद एडॉप्टर से अटैच कर फोटो लेने में परेशानी नहीं आई।
4 घंटे की मेहनत के बाद ली तस्वीर
नासा के नियमों के अनुसार ही फोटो ली गई है। इस फोटो के लिए वेदांत टेलीस्कोप लेकर करीब 4 घंटे तक छत पर खड़े रहे। काफी देर तक एंगल बनाने के बाद पूंछो वाली फोटो मिली। इस तरह की फोटो नासा या फिर बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों के ही हाई टेक कैमरे ही ले जाती हैं। वेदांत ने बताया कि ग्रीन कॉमेट की इस तरह की साफ तस्वीर लद्दाख या पॉल्यूशन फ्री वाले जगहों से ही ली जा सकती है।
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