वाराणसी। आज अनंत चतुर्दशी से वाराणसी (Varanasi) के रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला (Ramnagar Ramleela) का मंचन शुरू हो गया है, जो पूरे एक महीने तक चलेगा। शाम पांच बजे रामबाग लीला स्थल में रावण जन्म और रामावतार की भविष्यवाणी के साथ ही दुनिया के अनूठे रंगमंच का पर्दा उठेगा। काशी इस लीला का इतिहास करीब 240 साल पुराना है, आज भी काशी नरेश इस लीला का मंचन देखने रोजना पहुंचते है।

सन् 1883 में काशी नरेश ने की थी लीला की शुरुआत

सन् 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। बस तब से इस लीला का मंचन निरंतर चला आ रहा है। आज भी इस लीला में जब काशी नरेश अनंत नारायण सिंह हाथी पर सवार होकर इसे निहारने आते हैं तो हर-हर महादेव के जयघोष से उनका स्वागत किया जाता है।

इंद्रदेव का पूजन और पूर्वाभ्यास

रामलीला पर निकलने वाली शाही सवारी को देखते हुए बुधवार की शाम नगर के प्रमुख मार्गों पर पूर्वाभ्यास किया गया। हालांकि इसमें बाघंबरी बग्घी के बजाय इस बार शहर से सामान्य बग्घी मंगाकर पूर्वाभ्यास किया गया जो लीला स्थलों तक जाकर दुर्ग लौटी। इससे पहले प्रातःकाल लीला निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए दुर्ग के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से की बुर्जी पर परंपरानुसार इंद्रदेव का पूजन कर सफेद सफेद ध्वज फहराया गया।

रामलीला के क्रम में भाद्र शुक्ल चतुर्थी से रामलीला पक्की पर चल रहे बालकांड के 175 दोहे-चौपाइयों का बुधवार की शाम गायन पूरा कर लिया गया। दस दिनों तक इसमें रामायणी दल ने उन प्रसंगों का गायन किया जिनका लीला में मंचन नहीं किया जाता है।

5 किमी क्षेत्र में होती है लीला

इस लीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) द्वारा रचित रामचरित मानस की चौपाई पर होता है। आधुनिकता के इस दौर में भी लीला का मंचन वैसे ही होता है, जैसा 239 साल पहले हुआ करता था। न लाइट का तामझाम और न ही स्टेज का झंझट, रामनगर के पांच किलोमीटर के क्षेत्र में ये लीला घूम-घूम कर होती है।

शेषनाग व पुतलों को अंतिम रूप देने में जुटे कारीगर

नगर स्थित रामबाग पोखरा पर गुरुवार को अनंत चतुर्दशी के दिन रावण जन्म व क्षीरसागर की झांकी से शुरू होने वाली रामलीला स्थलों पर पूरे दिन साफ सफाई व कीचड़ पाटने का काम होता रहा। जेसीबी मशीन सहित आधा दर्जन से ज्यादा कर्मचारी काम में जुटे रहे। इसके अलावा रामलीला में उपयोग होने वाले पक्षी व जानवरों के पुतलों को अंतिम रूप देने के लिए कारीगर मेहनत करते नजर आए। सबसे ज्यादा कारीगर क्षीरसागर के दौरान प्रयोग होने वाले शेषनाग को बनाने में लगे रहे। कारीगरों का कहना था कि गुरुवार दोपहर तक शेषनाग को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।

Ankita Yaduvanshi

Ankita Yaduvanshi

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