वाराणसी। भगवान शिव की नगरी काशी की बात ही निराली है, जो यहां आता है यहीं का होके रह जाता है, क्योंकि ये शहर जहां धर्म व अध्याम की नगरी से जाना है तो वहीं दूसरी ओर ये अपने अल्हड़पन ठेठ बनारसी अंदाज से भी फेमस है। यहां की कुछ परंपराएं ऐसी है जो काफी अनोखी है। इनमें से एक परंपरा ऐसी है जो अप्रैल महीने के पहले दिन देखने को मिली। काशी में अप्रैल महीने की पहली तारीख को "महामूर्ख सम्मेलन" का आयोजन किया गया। जितना अनोखा यह सम्मेलन होता है, उतना ही अनोखा यहां का सम्मान भी होता है। इस सम्मेलन में वाराणसी के प्रसिद्ध सांड बनारसी और दमदार बनारसी ने लोगों लोटपोट होने पर मजबूर कर दिया।


सम्मेलन में आए अतिथियों और गणमान्य लोगों का माल्यार्पण करने के साथ ही आयोजकों ने प्रतीकात्मक बुलडोजर देकर स्वागत किया गया। महामूर्ख सम्मेलन का आयोजन कराने वाले आयोजक डॉ रमेश पांडे ने बताया कि वाराणसी में महामूर्ख सम्मेलन का आयोजन पिछले 55 वर्षों से होता चला आ रहा है। इस सम्मेलन में काशी के विद्वत, कवि, साहित्यकार सहित तमाम गणमान्य शामिल होते हैं। इस सम्मेलन को काशी के 55 वर्ष पहले साहित्यकार, कवि और गणमान्य लोगों ने शुरू किया था। पहले यह आयोजन घाट के बजाए चौक क्षेत्र में एक मकान के छत पर हुआ करता था, लेकिन जब वह छत जर्जर हो गया सम्मेलन को घाट पर करवाने की कवायत की गई।



महामूर्ख सम्मेलन कराए जाने के पीछे भी एक रोचक कहानी आयोजकों ने बताया। आयोजकों की मानें तो अप्रैल महीने के पास चैत्र नवरात्र यानी कि सनातन धर्म का नया साल होता है। सनातन धर्म के नए वर्ष का उपहास करने के लिए अंग्रेजों ने इस दिन मूर्ख दिवस मनाना शुरू कर दिया। अंग्रेजों की उपहास को हमने भी विरोधाभास करते हुए हंसी का ठहाका लगाकर, उनके मूर्ख दिवस का जवाब अपनी कविताओं के माध्यम से दिया।



राजेंद्र प्रसाद घाट पर आयोजित हुए महामूर्ख सम्मेलन में आए हास्य कवि की कविताओं को सुनकर जहां लोग हंसते हुए लोटपोट हो गए। वही साहित्यकारों के रचनाओं को सुनकर काशी की जनता और पर्यटक साहित्यकारों की काफी सराहना की। सम्मेलन में मुख्य रूप से वाराणसी कमिश्नरेट के एडिशनल सीपी संतोष कुमार सिंह और डीसीपी सूर्यकांत त्रिपाठी अपने परिवार के साथ मौजूद रहे।

Ankita Yaduvanshi

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