Basant Panchami 2023 : मां सरस्वती का अनोखा मंदिर, यहां स्तंभों से निकलते हैं संगीत के सातों स्वर
Basant Panchami 2023 : आज पूरे देश में धूमधाम से बसंत पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है। ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती की उपासना का पावन पर्व…

Basant Panchami 2023 : आज पूरे देश में धूमधाम से बसंत पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है। ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती की उपासना का पावन पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन पड़ता है। मां सरस्वती को विद्या और संगीत की देवी माना जाता है। वैसे तो पूरे भारत में इनके कई मंदिर है, लेकिन आज हम आपको इस खास पर्व पर माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां मंदिर के एक स्तंभ से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं। आप अगर ध्यान से कान लगाकर सुनेंगे तो आपको इससे निकलने वाली ध्वनि साफ सुनाई देगी। इस मंदिर की सबसे खास बात यही है जो सभी भक्तों का अपने ओर खींचती है। आइए जानते है ये मंदिर कहां स्थित है और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है…
जानें कहां स्थित है मंदिर
दरअसल, हम जिस मंदिर की बात कर रहें है, वो आंध्र प्रदेश के बासर गांव में स्थित है। गोदावरी के तट पर देवी सरस्वती का यह मंदिर विराजमान है। मान्यता अनुसार महाभारत ग्रंथ के रचयिता ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए अपने मुनियों के साथ उत्तर भारत की तीर्थ यात्रा पर पहुंचे थे। गोदावरी के तट पर बसे बासर गांव की खूबसूरती को देखकर वे कुछ देर यहीं विश्राम करने के लिए ठहर गए और यहीं उन्हें अपने ज्ञान की अनुभूति हुई।

जानें मंदिर का पौराणिक इतिहास
मान्यता अनुसार यहां मां सरस्वती के मंदिर से थोड़ी दूर स्थित दत्त मंदिर है जहां से होते हुए गोदावरी नदी तक एक सुरंघ जाया करती थी, इसी सुरंग की मदद से उस समय के राजा-महाराजा मां के पूजन के लिए यहां जाया करते थे। कथाओं के अनुसार वाल्मीकि ऋषि ने यहां आकर देवी सरस्वती से उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था और उसी के बाद यहीं रामायण के लेखन की शुरुआत की थी।

देवी सरस्वती, वेद माता के नाम से विख्यात हैं, चारों वेद इन्हीं के स्वरूप माने जाते हैं, उन्हीं के प्रेरणा से उन्होंने वेदों की रचना की हैं। कहते हैं कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान बने थे।
जानें मंदिर की खासियत
इस मंदिर में सरस्वती जी की बहुत ही भव्य प्रतिमा है और साथ ही यहां मां लक्ष्मी जी भी विराजमान हैं। माता सरस्वती की यह प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है और इसकी ऊंचाई 4 फुट है। इस मंदिर की सबसे खास बात जो सभी भक्तों का अपने ओर खींचती है वह यह है कि मंदिर के एक स्तंभ से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं आप अगर ध्यान से कान लगाकर सुनेंगे तो आपको ध्वनि साफ सुने देगी।

यहां की धार्मिक रीति भी प्रचलित है जिसे अक्षरआराधना कहा जाता है। अक्षरआराधना में बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारंभ कराने से पहले अक्षराभिषेक कराने यहां लाया जाता है यानी बच्चे के जीवन के पहले अक्षर यहां लिखवाए जाते हैं। इसके बाद प्रसाद के रूप में हल्दी का लेप बांटा जाता है।

