Mukhtar Ansari Death: बांदा जेल में बंद बाहुबली पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की दिल का दौरा पड़ने से आज 63 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। मुख्तार अंसारी एक ऐसा नाम रहा है, जो पूर्वांचल में ही नहीं बल्कि प्रदेश और देश के दूसरे राज्यों में घटने वाली बड़ी आपराधिक घटनाओं से चर्चा में रहता था। अपराध से लेकर सियासी दुनिया तक मुख्तार का बोलबाला था। वहीं माफिया मुख्तार अंसारी के परिवार की बात करे तो वो प्रतिष्ठित परिवार से रहा। उसके चचेरे दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी 1926-27 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। नाना को महावीर चक्र से सम्मानित किया चुका है, लेकिन ताजुब्ब की बात है कि इतने प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य की इतनी कुख्यात छवि कैसे? आइए आज हम आपको बताते है कि कैसे मुख्तार ने जुर्म की दुनिया में कदम रखा।

एक वक्त था जब मुख्तार और उसके परिवार की तूती बोलती थी। अपराध की दुनिया में वह काफी बड़ा नाम था। जमीन पर कब्जा, अवैध निर्माण, हत्या, लूट, सहित अपराध की दुनिया के कुछ ही ऐसे काम होंगे, जिनसे मुख्तार का नाम न जुड़ा हो। पूर्वांचल का कोई भी ऐसा सरकारी ठेका नहीं था, जो उसकी मंजूरी के बगैर किसी और को मिल जाए। सूबे की सियासत उसकी मुट्ठी में थी। वह जो बोलता था, वही होता था।

शुरुआत मुख्तार के परिवार से करते हैं...

मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में हुआ। परिवार का काफी नाम था। लोग खूब सम्मान करते थे। मुख्तार अंसारी के दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे। वे 1926-1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और फिर मुस्लिम लीग अध्यक्ष भी रहे।




कहा जाता है कि डॉ. अंसारी महात्मा गांधी के काफी करीबी थे। वह गांधीवादी विचारधारा से जुड़े थे। मुख्तार अंसारी के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी बड़े वामपंथी नेता थे। उन्होंने अपने परिवार की विरासत को बखूबी आगे बढ़ाया। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा लगते हैं।

मुख्तार अंसारी के ननिहाल की बात करें तो उनका भी समाज में काफी नाम रहा है। मुख्तार अंसारी के नाना बिग्रेडियर उस्मान आर्मी में थे और उन्हें उनकी वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। बिग्रेडियर उस्मान ने 1947 की जंग में भारत को नवशेरा में जीत दिलाई थी। वो इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए थे और उनकी शहादत के बाद ही उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

मुख्तार अंसारी की शुरुआती पढ़ाई युसुफपुर गांव में हुई। इसके बाद उसने गाजीपुर कॉलेज से स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई पूरी की।

अपराध की दुनिया में कदम रखा तो घरवालों ने कर दी शादी

ये बात है 25 अक्तूबर 1988 की। आजमगढ़ के ढकवा के संजय प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना सिंह ने मुख्तार अंसारी सहित सात लोगों के खिलाफ कैंट थाने में हत्या के प्रयास के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में नौ अगस्त 2007 को मुख्तार को दोषमुक्त कर दिया गया। 1988 में ही मुख्तार अंसारी का नाम एक हत्या के मामले में सामने आया। मुख्तार अंसारी पर मंडी परिषद के ठेके के मामले में एक लोकल ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या के आरोप लगे। इतना ही नहीं इसी दौरान पुलिस से बचते हुए एक कॉन्स्टेबल की हत्या के आरोप भी मुख्तार अंसारी पर लगे लेकिन पुलिस को उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। इसके बाद तो जैसे आए दिन मुख्तार अंसारी के अपराध से जुड़ने की खबरे आने लगी।

हालांकि, इस घटना के बाद मुख्तार के घरवाले भी परेशान हो गए। उन्होंने 1989 में अफशा अंसारी से मुख्तार की शादी करा दी। परिवार को लगा था कि शादी के बाद मुख्तार सुधर जाएगा, लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। मुख्तार अपराध की दुनिया में कदम रख चुका था और परिवार के रसूख के चलते उसका दबदबा भी बनने लगा।




फिर बृजेश सिंह और मुख्तार का हुआ आमना-सामना

जिस वक्त गाजीपुर से मुख्तार ने अपराध की दुनिया में कदम रखा, उसी वक्त पूर्वांचल में एक और बड़ा नाम गूंज रहा था। वह नाम था बृजेश सिंह का। बृजेश के सिर पर माफिया त्रिभुवन सिंह का हाथ था। बृजेश का नाम अरुण सिंह था। बृजेश वाराणसी के धौरहरा गांव के किसान और स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह का बेटा है। आम परिवार की तरह बृजेश ने भी सपने देखे थे, लेकिन एक घटना से उसकी किस्मत बदल दी। कहा जाता है कि 12वीं पास करने के बाद बृजेश ने स्नातक में दाखिला लिया था। इसी बीच, 27 अगस्त 1984 में गांव के कुछ दबंगों ने बृजेश के पिता की हत्या कर दी। इसके बाद बदले की आग में बृजेश पूरी तरह से बदल गया। एक साल बाद बृजेश ने अपने पिता की हत्या का बदला ले लिया। पिता की हत्या के मुख्य आरोपी हरिहर सिंह की हत्या का आरोप बृजेश पर लगा।

बृजेश को उस वक्त एक और माफिया का साथ मिला। वह था त्रिभुवन सिंह का। त्रिभुवन की कहानी भी कुछ बृजेश जैसी ही थी। यही कारण है कि दोनों में जल्दी दोस्ती हो गई। बृजेश और त्रिभुवन ने देखते ही देखते पूर्वांचल में अपनी अलग पहचान बना ली। दोनों बालू और स्क्रैप की ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह के लिए काम करने लगे।

उधर, मुख्तार अंसारी इसी पेशे में साहिब सिंह के दुश्मन और विरोधी कहे जाने वाले मकनू सिंह के लिए काम करने लगा था। सरकारी ठेकों में वर्चस्व को लेकर मकनू और साहिब सिंह के बीच चल रही अदावत बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच भी शुरू हो गई। एक समय ऐसा आया कि दोनों अपने बॉस को छोड़कर खुद के दम पर काम करने लगे। मुगलसराय की कोयला मंडी, आजमगढ़, बलिया, भदोही, बनारस से लेकर झारखंड और बिहार तक की शराब तस्करी, स्क्रैप का कारोबार, रेलवे के ठेके से लेकर बालू के पट्टे तक को लेकर बृजेश और मुख्तार गैंग के बीच गोलियां चलने लगीं।

खूनी खेल के बीच, सियासत में रखा कदम

बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह मुख्तार अंसारी के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके थे। जमीनी ठेकों को लेकर अक्सर दोनो के गैंग में कई सालों तक खूनी खेल चलता रहा। इस बीच, 2001 में बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर जानलेवा हमला भी करवाया। इसमें मुख्तार बाल-बाल बच गया। मुख्तार का सियासी कद काफी बढ़ चुका था। इसके चलते बृजेश को यूपी छोड़कर भागना पड़ा। वह उड़ीसा पहुंच गया। यहां वह एक कारोबारी बनकर रहने लगा।




उधर, बृजेश रास्ते से हटा तो मुख्तार अपना सिक्का चलाने लगा। गाजीपुर, मऊ, बनारस इन सभी इलाकों में मुख्तार ने अपना दबदबा कायम कर लिया। कुछ ही सालों में उनका गैंग काफी मजबूत हो गया था। कहा जाता है कि एक तरफ मुख्तार अंसारी अंडरग्राउंड होकर जमीन कब्जा, शराब के ठेके, रेलवे ठेकेदारी, खनन जैसे कई अवैधानिक कामों के जरिए पैसा बना रहा था, तो दूसरी ओर वो आम जनता की मदद करके अपनी छवि सुधारने का भी काम कर रहा था। यही मुख्तार का प्लान था। राजनीति में कदम रखने का।

अंसारी परिवार पूर्वांचल में अच्छा खासा रुतबा रखता ही था और साथ ही मुख्तार अंसारी ने भी गरीब लोगों के बीच अपनी अलग छवि बना ली थी। इसी के सहारे उसने 1996 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर मऊ सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा। अंसारी ने इस चुनाव में जीत दर्ज की। यहीं से मुख्तार का सियासत में कदम मजबूत होने लगा।

मुख्तार अंसारी हर बार मऊ सीट से ही चुनाव लड़ता जीत हासिल करता रहा। पांच बार लगातार विधायक चुना गया। 2002 और 2007 में मुख्तार अंसारी ने मऊ से ही निर्दलीय चुनाव लड़ा और उसमें भी जीत हासिल की। विधानसभा की सीट वो जीत ही रहे थे 2009 में बीएसपी से ही मुख्तार ने लोकसभा वाराणसी सीट पर अपनी किस्मत अजमाने की सोची लेकिन इस बार किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वो अपना पहला लोकसभा चुनाव हार गया। 2012 में मुख्तार अंसारी ने कौमी एकता दल के नाम से एक नई पार्टी बनाई और इसी पार्टी से विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। 2017 में एक बार फिर मुख्तार अंसारी ने बीएसपी का रुख किया और मऊ से फिर विधायक चुना गया।

जब देश में गूंजने लगा मुख्तार का नाम

1988 में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले मुख्तार ने 1996 में सियासत की सीढ़ी चढ़नी शुरू कर दी। लेकिन इस बीच, उसने अपने पुराने कामों को बंद नहीं किया। वह अपराध की जगत का बड़ा नाम था और सियासत के जरिए गरीबों के मददगार होने का ढोंग करता रहा।





ये बात है साल 2005 की। ये किस्सा शुरू हुआ मुहम्मदाबाद सीट से। ये सीट 1985 से अंसारी परिवार के पास रही है और उस वक्त मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी इससे चुनाव लड़ रहे थे। 2002 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को यहां से चुनाव में मात दी। कहते हैं ये बात मुख्तार अंसारी को नागवार गुजरी और कृष्णानंद राय, मुख्तार अंसारी के निशाने पर आए गए।

2005 में मऊ में हिंसा भड़की और हिंसा भड़काने के आरोप मुख्तार अंसारी पर लगे। मुख्तार अंसारी ने बड़ी ही चालाकी से इस मामले में गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। उसकी नियत में कुछ और ही था। मुख्तार के जेल में रहते हुए बाहर एक ऐसा खेल खेला गया जिसका आरोप भी मुख्तार अंसारी पर लगा।

29 नवंबर 2005 को अफजाल अंसारी को हराने वाले भाजपा विधायक कृष्णानंद राय अपने काफिले के साथ गाजीपुर से एक क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन करके लौट रहे थे। तभी उनके काफिले पर एके-47 से हमला हो गया। कहा जाता है कि हमलावरों ने पूरी गाड़ी को गोलियों से छलनी कर दिया। 400 से भी ज्यादा राउंड की फायरिंग हुई। कृष्णानंद समेत पांच लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। इसका आरोप लगा मुख्तार अंसारी पर। कहा जाता है कि जेल में रहकर ही मुख्तार अंसारी ने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी और अतीक उर रहमान की मदद से कृष्णानंद की हत्या करवाई।

भाजपा के राज में अंसारी परिवार की बढ़ गई मुश्किलें

मुख्तार अंसारी 2005 के बाद से ही अलग-अलग जेलों में बंद था। पहले उसे गाजीपुर जेल में रखा गया, उसके बाद मथुरा, आगरा, बांदा और फिर पंजाब जेल में भी लंबे समय तक रहा। पंजाब के रोपड़ जेल में तो मुख्तार अंसारी को वीआईपी ट्रीटमेंट देने की खबरें भी सामने आईं थीं। कहा जाता है कि 2017 में योगी सरकार आने के बाद से मुख्तार अंसारी और उसके परिवार की मुश्किलें बढ़ती रहीं हैं। मुख्तार की करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति को जब्त कर ली गई। जबकी इस गैंग के कई गुर्गे अलग-अलग आरोपों में जेल में बंद हैं।

मुख्तार का एक बेटा जेल में बंद है। उसकी पत्नी पर भी केस चल रहा है। दूसरा बेटा फरार चल रहा है। उसके खिलाफ कोर्ट ने वारंट जारी किया है। मुख्तार की पत्नी भी 50 हजार की इनामी बदमाश है। वह भी लंबे समय से फरार चल रही है।

Updated On 28 March 2024 8:29 PM GMT
Ankita Yaduvanshi

Ankita Yaduvanshi

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