हमारे देश में महादेव के कई असंख्य छोटे-बड़े मंदिर हैं, इनमें से कई मंदिर ऐसे भी है जो काफी अद्भुत और चत्कारी है। आज महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2024) के पावन पर्व पर हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जो विश्व का सबसे बड़ा शिव मंदिर है। कहा जाता है कि इसी मंदिर में भोलेनाथ ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था। तो आइए जानते है इस मंदिर के बारें में कि ये कहां स्थित है…

यहां स्थित है मंदिर

दरअसल, हम जिस मंदिर की बात कर रहे है वो तमिलनाडु के तिरुवनमलाई जिले में अन्नामलाई पर्वत की तराई पर स्थित है। इस मंदिर को अरुणाचलेश्वर शिव मंदिर कहा जाता है। यहां पर सावन और महाशिवरात्रि भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं और शिव का जलाभिषेक करते हैं। वहीं कार्तिक पूर्णिमा पर मेला भी लगता है। श्रद्धालु यहां अन्नामलाई पर्वत की 14 किमी लंबी परिक्रमा कर महादेव से मन्नत मांगते हैं। कहा जाता है कि यह विश्व में भोलेनाथ का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर को बहुत ही खूबसूरती से बनाया गया है।



अग्नि रूप में होती है भगवान शिव की पूजा

ऐसी मान्यता है कि तिरुवनमलाई वह स्थल है जहां शिवजी ने ब्रह्माजी को श्राप दिया था। अरुणाचलेश्वर का मंदिर वहीं बना है। यह मंदिर पहाड़ की तराई में है। वास्तव में यहां अन्नामलाई पर्वत ही शिवजी का प्रतीक है। यहां स्थापित लिंगोत्भव नामक मूर्ति में प्रभु शिवजी को अग्नि रूप में, विष्णु जी को उनके चरणों के पास वराह रूप में और ब्रह्माजी को हंस के रूप बताया गया है।

स्थापित हैं आठ शिवलिंग

पर्वत तक पहुंचने के रास्ते में इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरूति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई आठ शिवलिंग स्थापित हैं। लोगों की धारणा है कि इस मंदिर में नंगे पांव जाने से पापों से छुटकारा पाकर मुक्ति मिल सकती है। मंदिर की कहानी शिव पुराण में इस मंदिर की कथा का उल्लेख है।

कहा जाता है कि एक बार विष्णुजी और ब्रह्माजी के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया था। उन्होंने इस विवाद को सुलझाने के लिए शिव की मदद मांगी। तब शिव ने उन दोनों की परीक्षा लेने का निश्चय किया। शिवाजी ने विष्णुजी और ब्रह्माजी से कहा कि जो कोई मेरा आदि या अंत से पहले पाता है, वह अधिक उन्नत होगा।

पर्वत तक पहुंचने के रास्ते में इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरूति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई आठ शिवलिंग स्थापित हैं। लोगों की धारणा है कि इस मंदिर में नंगे पांव जाने से पापों से छुटकारा पाकर मुक्ति मिल सकती है।

मंदिर की कहानी

शिव पुराण में इस मंदिर की कथा का उल्लेख है। कहा जाता है कि एक बार विष्णुजी और ब्रह्माजी के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया था। उन्होंने इस विवाद को सुलझाने के लिए शिव की मदद मांगी। तब शिव ने उन दोनों की परीक्षा लेने का निश्चय किया। शिवाजी ने विष्णुजी और ब्रह्माजी से कहा कि जो कोई मेरा आदि या अंत से पहले पाता है, वह अधिक उन्नत होगा।

भगवान विष्णु ने वराह के रूप में अवतार लिया और शिव के चरम को खोजने के लिए जमीन खोदना शुरू कर दिया। जब भगवान ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और अपने मूल रूप (सिर) को खोजने के लिए आकाश में उड़ गए। लेकिन इन दोनों में से कोई भी सफल नहीं हो सका। जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली और लौट गए। दूसरी ओर ब्रह्माजी भी शिव के शिखर की खोज करते-करते थक गए। हालांकि इसी बीच उन्होंने केवड़ा का फूल जमीन पर गिरते देखा। केवड़ा का यह पुष्य यहां कई वर्ष पूर्व भगवान शिव के बालों से गिरा था।

जब ब्रह्माजी को इस बात का पता चला तो उन्होंने शिव से झूठ बोलने के लिए फूल से प्रार्थना की कि ब्रह्माजी ने इसकी शुरुआत यानी शीर्ष को देखा है। ब्रह्माजी के अनुरोध पर पुष्य झूठ बोलने के लिए तैयार हो गया। वहीं जब केवड़े के ब्रह्माजी और पुष्य ने झूठ बोला तो शिवाजी को गुस्सा आ गया। उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दिया कि पृथ्वी पर उनके लिए कोई मंदिर नहीं होगा। तब केवडें ने पुष्य को श्राप दिया कि उसकी पूजा में कभी भी इसका उपयोग नहीं किया जाएगा।

हर मनोकामना होती है पूरी

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव इस मंदिर में जाकर हर मनोकामना पूरी करते हैं। यही कारण है कि भक्त अन्नामलाई पर्वत की परिक्रमा करते हैं। सर्किट 14 किलोमीटर लंबा है। परिक्रमा के बाद, भक्त शिव के पास जाते हैं और शिव से व्रत मांगते हैं।

Updated On 8 March 2024 6:18 AM GMT
Ankita Yaduvanshi

Ankita Yaduvanshi

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