Female Naga Sadhu : प्रयागराज में का प्रसिद्ध माघ मेला (Magh Mela 2023) आज 6 जनवरी से शुरू हो गया है। इस मेले में देश-दुनिया से श्रद्धालु और साधु-संत गंगा…

Female Naga Sadhu : प्रयागराज में का प्रसिद्ध माघ मेला (Magh Mela 2023) आज 6 जनवरी से शुरू हो गया है। इस मेले में देश-दुनिया से श्रद्धालु और साधु-संत गंगा यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर डुबकी लगाने के लिए आते हैं। जिसकी वजह से यह मेला और भी आकर्षक और रंग-बिरंगा हो जाता है, लेकिन इस मेले का सबसे रहस्यमयी रंग होता है नागा साध्वी का जिनकी दुनिया रहस्यों से भरी हुई होती है, नागा साधु की तरह ही इनका जीवन भी चुतौनीपूर्ण होता है। आइए आपको बताते है नागा साध्वी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।

भक्ति और त्याग का प्रतीक होती है नागा साध्वी

आपको बात दें कि नागा साध्वी (Female Naga Sadhu) भक्ति और त्याग का प्रतीक होती है। महिला नागा साधु बनने के लिए ऐसे चरणों से गुजरना पड़ता है, जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे। इन्हें सबसे पहले भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। गृहस्थ जीवन से पूरी तरह खुद को निकालकर अपना पिंडदान कर ये साध्वी खुद को इस संसार के लिए मृत बना देती हैं। उसके बाद शुरू होता है इनका नया और कठिन जीवन, जहां ये सारी सुविधाओं से दूर हो जाती हैं, फिर इनका एकमात्र काम होता है, भक्ति और साधना।

गर्मियों की दोपहर या पूष की रात इनका जीवन होता है एक समान

ये पूरे दिन साधना में लीन रहती हैं। इन्हें सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है। इसके बाद ये नित्य कर्मों के बाद शिवजी का घोर जप करती हैं। दोपहर में भोजन करने के बाद फिर से शिवजी की साधना में लग जाती हैं। नागाओं के इष्ट भगवान शंकर होते हैं, इसलिए इनका जीवन भी बिल्कुल भगवान शिव की तरह रमता हुआ होता है। ये चौतरफा अग्नि के बीच में बैठ कर साधना करती हैं। गर्मियों की दोपहर हो या पूष की रात, नागाओं का जीवन एक समान ही होता है।

10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन

किसी भी मिला को नागा साध्वी (Naga Sadhu) बनने के लिए अलग-अलग तरह की साधना करनी पड़ती है। जब ये नागा साध्वी 10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं, इन सालों में इन साध्वियों को अपनी भक्ति और समर्पण साबित करना पड़ता है। तब इन्हें सांसारिक मोह-माया से दूर रखा जाता है। इससे इनमें समर्पण की भावना का विकास होता है। इस समर्पण के बाद ही इन्हें दीक्षा और परीक्षा के लिए भेजा जाता है।

इतना करने के बाद ही इस बात का निर्णय लिया जाता है कि किसी महिला को नागा साध्वी बनाया जा सकता है या नहीं। दरअसल, महिला नागाओं का जीवन बहुत कठिन होता है। ऐसे में कई बार ये बीच में ही साधना को छोड़ देती हैं।

गेरुए रंग के कपड़े पहनने की ही होती है अनुमति

नागा साध्वी बनने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संन्यासी जीवन जीने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए। महिला नागा संन्यासिन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं। जब एक महिला, नागा साध्वी बन जाती है, तो सारे ही साधु और साध्वियां उसे माता कहकर पुकारते है। नागा साध्वी को अपने मस्तक पर एक तिलक लगाना पड़ता है, ऐसे में उन्हें गेरुए रंग के कपड़े पहनने की ही अमनुमति होती है।

आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा दिलाई जाती है शपथ

आपको बता दें कि, महिलाओं को संन्यासी बनाने की प्रक्रिया अखाड़ों के सर्वोच्च पदाधिकारी आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा पूरी करवाई जाती है। महिला नागा साधु बनने के दौरान हर महिला को अपने बाल पूरी तरह से छिलवाने होते हैं, इसके बाद वह नदी में पवित्र स्नान करती हैं। यह उनके साधारण महिला से नागा साधु बनने की प्रक्रिया में प्रवेश होता है। महिला और पुरुष नागा साधुओं के बीच जो सबसे बड़ा अन्तर होता है वह यह कि, पुरुष नागा साधु पूरी तरह से नग्न रहते हैं, जबकि नागा साध्वी अपने शरीर को गेरुए रंग के एक वस्त्र से हमेशा ढक कर रखती है।

कुंभ के स्नान के दौरान नग्न स्नान करना होता है

बता दें कि, इन महिलाओं को कुंभ के स्नान के दौरान नग्न स्नान भी नहीं करना होता है, वे स्नान के वक्त भी इस गेरुए वस्त्र को धारण की हुई होती है। नागा साध्वी को भी पुरुष नागा साधुओं के समान ही इज़्ज़त दी जाती है। वे भी नागा साधुओं के साथ ही कुंभ के पवित्र स्नान में पहुंचती हैं, लेकिन वे पुरषों के नहाने के बाद नहाने के लिए नदी में उतरती हैं।

Updated On 6 Jan 2023 4:05 AM GMT
Ankita Yaduvanshi

Ankita Yaduvanshi

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