‘Khakee’ से बदनाम हो गए बिहारी सिंघम IPS अमित लोढ़ा, कभी महतो गैंग और गैंगवार पर कसी थी लगाम

90s का अंतिम दौर चल रहा था, तब बिहार में अपराधियों का राज हुआ करता था। अन्य राज्यों के लोग बिहार जाने से डरते थे। उस समय बिहार के शेखपुरा जिले में गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देना आम बात थी। बिहार में महतो गैंग का राज चलता था। अंधेरा होने के बाद लोग घर से बाहर निकलने से भी घबराते थे।
लोगों के इस डर को खत्म किया था IPS अमित लोढ़ा ने। बतौर एसपी अमित लोढ़ा ने शेखपुरा के इस गैंगवार को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी। इस गैंगवार की कहानी बिहार में तब चल रही थी, जब बिहार में अपराध और राजनीति की खबरें अक्सर सुर्ख़ियों में होती थी। इस लड़ाई में कई सरकारी अधिकारियों, व्यापारियों, बच्चों, आम नागरिक और यहां तक की पूर्व सांसद राजो सिंह तक की हत्या हो गई थी। नितीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी यहां हत्याओं व अपराध का सिलसिला जारी रहा था। अमित लोढ़ा को उसी समय शेखपुरा के एसपी पद पर तैनात किया गया था।
IPS अफसर अमित लोढ़ा ने उस समय के खूंखार अपराधी अशोक महतो, जो महतो गैंग का लीडर था, को गिरफ्तार किया था। महतो को ‘शेखपुरा का गब्बर सिंह’ भी कहा जाता था। महतो ने अपने शार्प शूटर पिंटू महतो के साथ मिलकर मई 2006 में 15 लोगों की हत्या कर दी थी। आइए जानते हैं महतो गैंग को समाप्त करने वाले अमित लोढ़ा के बारे में-
परिचय
जयपुर (राजस्थान) के रहने वाले आईआईटी दिल्ली से पासआउट 1998 बैच के आईपीएस ऑफिसर अमित लोढ़ा को पुलिस में भर्ती होने की प्रेरणा अपने नाना से मिली। अमित ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि बचपन में वे फिजिक्स और केमिस्ट्री में अच्छे थे, लेकिन उनका सपना पुलिस में जाने का था। वे आईआईटी क्रैककर दिल्ली पहुंचे और उसके बाद यूपीएससी की परीक्षा देकर आईपीएस बने। उन्होंने अपने बिहार के अनुभवों पर किताब लिखी है जिसका नाम है ‘बिहार डायरीज’। इसी से प्रेरित होकर डायरेक्टर नीरज पाण्डेय ने खाकी: द बिहार चैप्टर नाम से वेब सीरीज बनाई है।
बिहार में ट्रान्सफर के बाद अमित ने संभव नाम के एक अभियान की शुरुआत की। जिसका मकसद बिहार के युवाओं की क्षमता को बाहर निकालना था। उन्होंने सुपरस्टार अक्षय कुमार के साथ ‘भारत के वीर’ फंड शुरू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो शहीदों के परिवार को सहायता देने के लिए था। बिहार में पोस्टिंग के कुछ ही दिनों में उन्होंने रामपुर में 9 नक्सलियों को गिरफ्तार किया। हालांकि उन्हें पहचान महतो गैंग के सफाई से मिली। बिहार डायरीज के अनुसार, उन्होंने तीन महीनों तक अशोक महतो के साथ चोर-पुलिस जैसा खेल खेलकर गिरफ्तार किया था।
इस दौरान उन्हें कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव का भी सामना करना पड़ा। इसके अलावा अपराध जगत में जातिवाद (अगड़ों और पिछड़ों की लड़ाई) का भी भरपूर सामना करना पड़ा। बिहार डायरीज के मुताबिक, महतो गैंग के सरगना चंदन महतो ने अपने दम पर साम्राज्य स्थापित किया था।
क्या है टाटी और और मानिकपुर नरसंहार
घटना 26 दिसंबर 2001 की है। बिहार में शेखपुरा और बरबीघा के बीच एक छोटा-सा पुल है जिसे ‘टाटी पुल’ के नाम से जाना जाता है। इसी पुल पर आरजेडी के क़रीबी लोगों की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। टाटी हत्याकांड में शेखपुरा ज़िले के तत्कालीन आरजेडी अध्यक्ष काशी नाथ यादव के अलावा अनिल महतो, अबोध कुमार, सिकंदर यादव और विपिन कुमार सहित आठ लोग मारे गए थे। कहा जाता है कि टाटी पुल नरसंहार से ही शेखपुरा में गैंगवार की शुरुआत हुई थी। उसके बाद यहाँ कई और हत्याएँ हुईं।
शेखपुरा के स्थानीय पत्रकार श्रीनिवास ने उस दौर की घटनाओं को क़रीब से देखा है। उनके मुताबिक़, “इस हत्याकांड का आरोप उस समय के सांसद राजो सिंह, उनके बेटे और राज्य सरकार में मंत्री संजय सिंह और राजो सिंह के परिवार के कई लोगों पर लगाया गया था।” श्रीनिवास ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था, “हालांकि बाद में राजो सिंह को आरोपों से बरी कर दिया गया। जबकि साल 2010 में जिस दिन मुंगेर कोर्ट ने संजय सिंह को सज़ा सुनाई, उसी दिन दिल का दौरा पड़ने से संजय सिंह की मौत हो गई।”
दरअसल उस दौर में इलाक़े में दो गैंग एक्टिव थे। एक था अशोक महतो गैंग जिसे पिछड़ी जातियों का गैंग कहा जाता था और दूसरा अगड़ी जातियों या मूल रूप से भूमिहारों का गैंग था। टाटी नरसंहार के चार साल के बाद ही राजो सिंह की भी हत्या कर दी गई थी।
श्रीनिवास ने बताया कि, “यह घटना साल 2006 की है। इसमें पहले महतो गिरोह के लोगों की सोते हुए गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। बाद में महतो गिरोह ने इस हत्याकांड के लिए एक परिवार पर मुखबिरी का आरोप लगाया था। इसका बदला लेने के लिए महतो गिरोह ने उस परिवार के घर में मौजूद सभी लोगों की हत्या कर दी थी।” 21 और 22 मई 2006 की इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की एक ख़बर के अनुसार इसमें तीन बच्चों समेत सात लोगों की हत्या की गई थी।
इस हत्याकांड के कुछ ही दिन पहले पड़ोस के नालंदा ज़िले में अशोक महतो गिरोह के नौ लोगों की हत्या कर दी गई थी। अशोक महतो गिरोह को इस हत्याकांड का शक अखिलेश सिंह के समर्थकों पर था। इसलिए माना जा रहा था कि इसी का बदला लेने के लिए मानिकपुर में अखिलेश सिंह के समर्थकों की हत्या की गई थी।
शेखपुरा और आसपास के इलाक़ों में इस तरह की हत्या आम बात हो गई थी। मानिकपुर हत्याकांड के ख़िलाफ़ लोगों में बड़ा आक्रोश शुरू हो गया। उसके बाद ही यहाँ अमित लोढ़ा को एसपी बनाकर भेजा गया। जिसके बाद उन्होंने रणनीति बनाकर बिहार को इस गैंगवार से मुक्ति दिलाई थी।
बिहार डायरीज पर बनी नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ वेब सीरीज ‘खाकी: द बिहार चैप्टर’ ने अच्छी खासी कमाई की। वेब सीरीज के निर्माण और इससे होने वाली कमाई के कारण अमित लोढ़ा बुरे भी फंसे। जिसके बाद उनपर जांच चली और जांच के बाद उन्हें सप्सेंड भी कर दिया गया। आईपीएस अमित लोढ़ा वर्तमान में पुलिस विभाग से सस्पेंड चल रहे हैं।
