वाराणसी। वाराणसी समेत पूर्वांचल में उमस से लोगों का हाल बेहाल है। इस वर्ष पूरे पूर्वांचल में कम बारिश हुई है। इसकी वजह अलनीनो यानी प्रशांत महासागर की गर्म जलधारा बतायी जा रही है, जिसने पूर्वांचल की करीब 30 प्रतिशत मानसूनी बारिश छीन ली। मौसम विज्ञान विभाग ने यूपी के चार जिलों को लार्जेस्ट डिफिशिएंट (एलडी) कैटेगरी यानी सबसे कम बारिश वाली श्रेणी में शामिल किया है। यानी यहां की स्थिति काफी चिंताजनक है। इनमें से तीन जिले पूर्वांचल के चंदौली, मऊ, मीरजापुर और एक कौशांबी है। यहां सबसे कम बारिश हुई। वाराणसी भी इससे अछूता नहीं रहा है।

वाराणसी में कमजोर बादलों ने बारिश की राह रोक दी है। मानसून सीजन की बात करें तो पिछले सात वर्षों में इस बार सबसे कम बारिश हुई है। 2017 से 2023 तक के मानसून सीजन के आंकड़ों पर गौर करें तो 2017 में 711 मिलीमीटर जबकि 2019 में 1000 मिलीमीटर बारिश हुई। इस साल 2023 में अब तक 590 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है। मौसम विज्ञानियों की मानें तो बादलों की कमजोरी ही इसकी मुख्य वजह है। मानसून का सीजन जून से सितम्बर तक माना जाता है और इन चार महीनों में औसत 910 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए। पूर्वांचल में मानसून के आने का समय 20 जून है। इस बार मानसून की दस्तक 25 जून को हुई और शुरूआत में अच्छी बारिश हुई, लेकिन इसके बाद मानसून मानो मौन हो गया।

मौसम विज्ञानियों की मानें तो जून में 134, जुलाई में 195 मिलीमीटर बारिश हुई। अगस्त में भी 180 मिलीमीटर बारिश रिकार्ड की गई। चालू माह में अब तक बारिश रुक-रुककर हो रही है। अब तक 80 मिलीमीटर बारिश हुई है। इस तरह इस सीजन में अब तक करीब 590 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है। हालांकि अभी इस माह में 21 दिन बचे हैं। मानसून सीजन में बारिश कम होने की वजह बादलों की कमजोरी है। बताया जाता है कि बंगाल की खाड़ी से आने वाले बादल यहां आते-आते इस बार कमजोर हो गए। बादलों की सक्रियता कम होने के कारण ही मैदानी भागों में इस बार अच्छी बारिश नहीं हुई है।

क्या है अलनीनो?

अमेरिकन जियो साइंस इंस्टीट्यूट के अनुसार, अलनीनो का संबंध प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से हैं। अलनीनो पर्यावरण की एक स्थिति है, जो प्रशांत महासागर के भूमध्य क्षेत्र में शुरू होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो, अलनीनो वह प्राकृतिक घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर का गर्म पानी उत्तर और दक्षिण अमेरिका की ओर फैलता है और फिर इससे पूरी दुनिया में तापमान बढ़ता है। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। यह तापमान सामान्य से कई बार 0।5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा हो सकता है। ये बदलाव अमूमन नौ से 12 महीने तक होते हैं। लेकिन, कई बार लंबे भी चलते हैं। कोई भी दो अलनीनो एक के बाद एक नहीं आते हैं।

एक अलनीनों का असर 8-10 महीनों तक

अलनीनो 10 साल में दो या तीन बार आता है। इसका असर 8-10 महीनों तक रहता है। इस स्थिति में मानसून के 30-40 प्रतिशत तक कमजोर होने की उम्मीद की जा रही है। हो सकता है कि मानसून आते ही तेज बारिश हो जाए, लेकिन सितम्बर तक जाते-जाते सूखा पड़ने लगे। पिछले साल दिसम्बर में दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर और पेरू के पास प्रशांत महासागर में अलनीनो की कंडीशन बनी थी। यानी कि यहां के समुद्र में गर्म जलधाराएं चल रही थीं। मौसम विज्ञान के अनुसार, जिस साल अलनीनो की कंडीशन बनती है, उस साल भारत में मानसूनी बारिश कम होती है।

बनारसी नारद

बनारसी नारद

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