विपक्षी समावेशी गठबंधन ‘इंडिया’ में बसपा को लाने के अंदरखाने प्रयास किए जा रहे हैं। सब कुछ इसी तरह से चलता रहा तो पांच राज्यों के चुनाव के बाद इसकी आधिकारिक घोषणा हो सकती है। इसमें कांग्रेस सूत्रधार की भूमिका में हैं। कवायद के तहत दोनों ओर के प्रथम परिवारों के बीच कई राउंड की बातचीत भी हो चुकी है।

लोकसभा चुनाव जीतने के लिए इंडिया गठबंधन कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। बसपा को साथ लाने की कोशिशें उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है। यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और बसपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। तब यह बातचीत अपने मुकाम तक तो नहीं पहुंच सकी थी, लेकिन तब से दोनों के बीच संवाद बना हुआ है। राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच मुलाकात भी हो चुकी है। बसपा की ओर से अब नेतृत्व के पारिवारिक हो चुके एक पूर्व सांसद की भी इसमें अहम भूमिका बताई जा रही है।

अगर यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बसपा-कांग्रेस का गठबंधन हो भी जाता तो भी रुकावटें पैदा होतीं। बाद में यह निर्णय लिया गया कि कांग्रेस 125 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बसपा शेष 278 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यह खबर लीक हो गई और ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि सत्तारूढ़ दल को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। चुनाव के बाद राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर कहा भी था कि हम यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी नेतृत्व के खिलाफ लड़ना चाहते हैं, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं थे. इस बार की रणनीति लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इसकी आधिकारिक घोषणा करने की है।

बसपा की प्रगति पर चर्चा के दौरान इसी तरह के बयान दिए जाने की उम्मीद है। गांधी परिवार के एक करीबी नेता के मुताबिक, 2017 के आम चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस का अनुभव असफल रहा था। इस चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने की बात करते रहे, लेकिन 145 सीटें देने का वादा करने के बावजूद कांग्रेस को 105 सीटें मिलीं। सपा ने भी अनुराग भदौरिया जैसे दस प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। हालाँकि, कांग्रेस को केवल 95 सीटें ही मिलीं।

Vipin Singh

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