मऊ। यूपी घोसी विधानसभा का उप चुनाव पूर्वांचल की राजनीति के लिए काफी अहम रहा। सभी पार्टियों के दिग्गजों की नजरें टिकी हुई थी। इस चुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। वहीँ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इसे ‘इंडिया’ गठबंधन की जीत बताया है।

वैसे देखा जाय तो, घोसी विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने साफ़ कर दिया है कि आप समीकरण बनाकर निश्चिंत नहीं हो सकते। ध्रुवीकरण की कोशिश कई बार नुकसान भी कराती है। पूर्वांचल में जिन समीकरण और वोटों के जरिए बीजेपी अपने आप को यहां का सिकंदर समझ रही थी, वही समीकरण अब घोसी के नतीजों के बाद उलझता सा नजर आ रहा है। ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान को साथ लेकर बीजेपी जो ओबीसी वोटरों को साधने का प्रयास कर रही थी, लेकिन माना जा रहा है कि इन दोनों के कारण ही पार्टी का कोर वोट बैंक भी हाथ से फिसलता जा रहा है। सुधाकर सिंह के पक्ष में स्वर्ण वोटों का जाना बीजेपी के लिए एक बड़ा और बुरा संकेत है।

घोसी के चुनाव प्रचार के वक़्त से ही माना जा रहा था कि यहां के उपचुनाव के नतीजे लोकसभा में काफी मददगार होंगे। यहां के नतीजों के बाद लोकसभा की राह थोड़ी आसान हो जाएगी। हालांकि हुआ भी यही। घोसी विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने के बाद से इस परिणाम ने साफ़ कर दिया है कि वोट बैंक को अपनी पॉकेट में समझना सभी पार्टियों के लिए एक बड़ी भूल होगी, जैसा कि बीजेपी ने समझा। सत्ता की नजदीकी की ख्वाहिश रखने वाले दारा सिंह चौहान को वोटर्स ने घर पर बैठाकर समीकरण और ध्रुवीकरण की राजनीति पर पानी फेर दिया है। सुधाकर सिंह ने स्थानीय स्तर पर वोटरों को साधा। इसमें सुधाकर को सवर्ण, ओबीसी और दलित वोटरों का साथ मिला। यहां सपा का समीकरण पूरी तरह एकजुट दिखा। भाजपा के वोटबैंक में सेंधमारी हुई और जीत समाजवादी पार्टी के हाथ लगी। चुनावी नतीजों से स्पष्ट हो रहा है कि घोसी के जो बदले समीकरण हैं, वह बीजेपी का टेंशन बढ़ाने वाले हैं।

घोसी में बीजेपी की इतने भारी अंतर से हार देखकर एक बात जो राजनीतिक गलियारों से निकलकर सामने आ रही है, वह यह कि घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव को थोपा गया था। जनसंपर्क के बजाय बीजेपी बस जनसभा और लंबे-लंबे भाषणों में उलझी रही। जनता की मूलभूत आवश्यकताओं पर उन्होंने अपना ध्यान केन्द्रित ही नहीं किया। अब इसका राजनीतिक एंगल देखा जाय, तो यूपी विधानसभा 2022 चुनाव से थोड़े ही समय पहले योगी सरकार-1 में मंत्री रहे दारा सिंह चौहान ने भाजपा को झटका देते हुए सपा का दामन थाम लिया। सपा ने उनकी मनपसंद सीट से उम्मीदवार बनाया और चौहान की इस सीट पर जीत हुई। सपा में जाने के पीछे का कारण उनका चुनावों में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद थी। लेकिन, प्रदेश की जनता ने एक बार फिर भाजपा की सरकार बनाई तो दारा सिंह चौहान का मन एक बार फिर बदल गया। वे भाजपा के साथ हो गए। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। उप चुनाव में पार्टी ने उम्मीदवार भी बनाया। लेकिन, घोसी की जनता का भरोसा जीत पाने में कामयाब नहीं हुए। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले घोसी के रण को NDA बनाम I.N.D.I.A. के रूप में पेश किया गया। इसमें जीत विपक्षी गठबंधन की हुई।

किसने किसके लिए किया प्रचार...

दूसरी ओर बीजेपी की ओर से चुनाव प्रचार में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एवं ब्रजेश पाठक, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी से लेकर सांसद मनोज तिवारी और रवि किशन तक उतरे। वहीं, समाजवादी पार्टी की ओर से शिवपाल यादव ने क्षेत्र में कैंप किया। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, राष्ट्रीय प्रधान महासचिव प्रो। रामगोपाल यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य, प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल से लेकर अन्य नेताओं ने पूरी ताकत झोंकी। इस चुनावी लड़ाई में पलड़ा समाजवादी पार्टी की तरफ झुका। दो बार के विधायक रहे सुधाकर सिंह तीसरी बार एमएलए बनकर यूपी विधानसभा पहुंचने की तैयारी में हैं।

मुद्दे को जमीन पर उतारने में रहे सफल

बीजेपी की इतनी करारी हार के बाद जो बातें सामने आ रही हैं वह यह कि बीजेपी बस मंच से बड़ी-बड़ी बातें ही करती रह गई। सीएम, डिप्टी सीएम, भूपेंद्र सिंह चौधरी से लेकर निरहुआ, मनोज तिवारी, रवि किशन सभी ने मंच से ही जनता को संबोधित किया। जमीनी स्तर पर इनके किसी भी बड़े नेता ने लड़ाई नहीं लड़ी। वहीँ सुधाकर सिंह के ओर से शिवपाल यादव, नरेश उत्तम पटेल ने नुक्कड़ सभाओं से लेकर डोर टू दूर कैम्पेनिंग किया। उन्होंने स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा छेड़ा। उन्होंने लोगों के बीच भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को बाहरी करार देने में सफलता हासिल की। दारा सिंह चौहान की दलबदलू वाली छवि ने भी उन्हें खासा नुकसान पहुंचाया। दलित वोटर छिटके। सवर्ण वोटरों का साथ सुधाकर सिंह मिला। एनडीए के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए। वोटों का ध्रुवीकरण भी काम नहीं आया। दारा सिंह चौहान 42,759 वोटों के अंतर से हारे। इतने बड़े अंतर से जीत की उम्मीद तो समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी नहीं कर रहे थे। परिणाम जारी होने के बाद सुधाकर सिंह ने बड़ा दांव खेला। उन्होंने कहा कि ओम प्रकाश राजभर का भीतर से हमें समर्थन हासिल था। इसी कारण इतनी बड़ी जीत हमें मिली।

दूसरी ओर, दारा सिंह चौहान और ओमप्रकाश राजभर दोनों ही बीजेपी और सपा में दलबदलू छवि के हो गए हैं। एक ने विधानसभा चुनाव लड़ा और दूसरे को इस चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसलिए कहा जा रहा है कि ‘खेला’ तो होना ही था। वहीं बीजेपी ने जातिगत समीकरण को भी दरकिनार कर केवल मंच साधने में व्यस्त रही। लिहाजा, सपा की सीट सपा के खेमे में चली गई। घोसी उप चुनाव पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि यहां पर 80 हजार मुस्लिम वोटर हैं। वहीं, यादव वोटरों की संख्या करीब 50 हजार है। चौहान, राजभर और निषाद वोटरों को मिला दें तो उनकी भी संख्या लगभग सवा लाख के आसपास हो जाती है। मतलब, यहां मुकाबला बराबरी का रहता है। ऐसे में हार-जीत सवर्ण और दलित वोटों के जरिए तय होता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां लड़ाई स्वर्ण बनाम दलित है। इस बार के चुनाव में सपा ने क्षत्रिय उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारकर खेल कर दिया। क्षत्रिय वोट बैंक का लगभग 50 फीसदी सुधाकर सिंह के पक्ष में गया। सुधाकर सिंह के स्थानीय और जमीन से जुड़े होने के कारण अन्य सवर्ण वोटरों ने भी साथ दे दिया। भले दारा सिंह चौहान भाजपा में वापसी कर रहे थे, लेकिन स्थानीय स्तर पर नेताओं से लेकर वोटर्स तक में उनकी दलबदल की राजनीति को लेकर नाराजगी थी। यह नाराजगी भारी पड़ी। कह सकते हैं कि दारा सिंह चौहान की छवि ख़राब हो गई थी।

समीकरण सुलझाकर जीते सुधाकर

घोसी में एससी वोटरों की संख्या करीब 70 हजार है। इनमें दलित, घोबी, खटीक, पासी और मुसहर समाज के लोग हैं। वहीं, मुसलमानों की 85 हजार आबादी में सबसे बड़ी संख्या अंसारी बुनकरों की है। इसके बाद स्थान आता है 55 हजार चौहान एवं नोनिया और करीब 50 हजार राजभर वोटरों का। विधानसभा सीट पर 15 हजार क्षत्रिय, 14 हजार भूमिहार, 7 हजार ब्राह्मण और 30 हजार बनिया समाज के वोटर हैं। 15 हजार कोइरी और 5 हजार प्रजापति कुम्हार जाति का भी वोट है। इन वोटों का समीकरण स्थानीय सुधाकर सिंह ने सुलझा लिया। दारा सिंह चौहान और भाजपा कागजों पर समीकरण को सुलझा कर दावे करती रही। जमीन पर खेल हो गया। ऐसे में अब लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी को पूर्वांचल में अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। राजनीतिक गलियारों में इस पर चर्चा तेज हो गई है।

Updated On 9 Sep 2023 5:52 AM GMT
बनारसी नारद

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