सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार : जानिए इस महातीर्थ की कहानी, क्यों है यहां स्नान का विशेष महत्व
Ganga Sagar Mela 2023 : सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार, यानि कहने का तात्पर्य यह है कि सभी तीर्थों में कई बार यात्रा का जो पुण्य होता है वह…

Ganga Sagar Mela 2023 : सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार, यानि कहने का तात्पर्य यह है कि सभी तीर्थों में कई बार यात्रा का जो पुण्य होता है वह मात्र एक बार गंगा सागर में स्नान और दान करने से प्राप्त हो जाता है। गंगासागर भारत के तीर्थों में एक महातीर्थ है। यहां मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti) पर बहुत बड़ा मेला लगता है, जहां दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत गंगा स्नान के लिए आते हैं। इस मेले की तैयारियां जोरों-शोरों से की जा रही है। यहां संक्रान्ति पर स्नान करने पर सौ अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गऊएं दान करने का फल मिलता है। आइए जानते है गंगासागर से जुड़ी पूरी कहानी विस्तार से व इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें…
इसलिए कहा जाता है गंगासागर
गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को ‘गंगासागर’ कहते हैं। इसे सागरद्वीप भी कहा जाता है। भारत की नदियों में सबसे पवित्र गंगा नदी है जो गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में आकर इसी सागर में मिलती है। यह स्थान देश में आयोजित होने वाले तमाम बड़े मेलों में से एक गंगासागर मेला के लिए सदियों से विश्वविख्यात है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है, जहां मकर संक्रान्ति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते हैं।

यहां स्थित है ये तीर्थस्थल
पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर है, जिन्होंने भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था। मान्यता है कि यहां मकर संक्रान्ति पर पुण्य-स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। मान्यता है कि गंगासागर की तीर्थयात्रा सैंकड़ों तीर्थयात्राओं के समान है। पहले यहां पहुंच पाना बड़ा कठिन सा था, लेकिन अब आधुनिक परिवहन और संचार साधनों से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

ये है इस तीर्थस्थल से जुड़ी कहानी
ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है, पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनि के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया पर उन्होंने विष्णु भगवान के सामने शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली और कपिलमुनि का जन्म हुआ। फलत: उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं, वे राज्य अधीनता स्वीकार करते हैं। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों की रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा।

अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलत: सगर पुत्र साधनारत ऋषि से नाराज हो उन्हें अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हें शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है।

इसलिए है यहां स्नान का महत्व
राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा और अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया, इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।

जो युवक-युवतियां यहां स्नान करती हैं उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है
गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन व पिण्डदान कर पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। मान्यता ह कि जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर और युवकों को स्वैच्छिक वधू प्राप्त होती है। अनुष्ठान आदि के बाद सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं और श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि और भागीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।
गंगासागर गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन स्थल है। गंगासागर वास्तव में एक टापू है जो गंगा नदी के मुहाने पर है। यहां काफी आबादी है। यह पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है। यहां की भाषा बंगला है। यहां पर रहने के लिए होटल मिलते हैं, साथ ही यहां विभिन्न मतों के अनेकों आश्रम,धर्मशालाएं भी हैं।
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