वाराणसी। कौमी एकता के शहर बनारस में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ईदगाह पुलकोहना में अगहनी जुमे की नमाज सकुशल अदा की गयी। अगहन माह में पड़ने वाली…
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वाराणसी। कौमी एकता के शहर बनारस में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ईदगाह पुलकोहना में अगहनी जुमे की नमाज सकुशल अदा की गयी। अगहन माह में पड़ने वाली इस ख़ास नमाज में शहर के सभी मुस्लिम भाइयों ने शिरकत की और बाद नमाज घरों को लौटते हुए किसानों के द्वारा बाहर लगाई गयी गन्ने की पहली फसल की दुकानों से गन्ना भी खरीदा। लोगों की माने तो यह नमाज 1500 ईंसवीं से होती आ रही है।
इस समय हिन्दू कैलेण्डर का माह अगहन चल रहा है ,मगर यह भी खूब है कि बनारस में मुस्लिम इस महीने के पहले जुमे को नमाज अदा करके आस्था को मिल्लत का रूप देते हैं। यह भी नहीं की यह कोई नई परम्परा है, बल्कि इसकी तारीखी हकीकत सैकड़ो साल कदीमी (प्राचीन) है। बुजुर्गों की जुबानी तो अगहन माह की नमाज कब शुरू हुई इसका कोई लिखित इतिहास नहीं मिलता, मगर सन 1500 ई से यह नमाज होती आ रही है। यह भी एक परम्परा है कि नमाज के दौरान हिन्दू वर्ग की ओर से साल की पहली फसल गन्ने की दुकान लगाई जाती है, जहां से नमाज अदा करके निकलने वाले गन्ने की खरीदारी करते हैं।
बनारस में ऐसा अक्सर देखा जाता है की कोई भी त्यौहार हो इसे हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। चाहे ईद हो या दिवाली या फिर होली, उसी तरह आज का ये तारीखी दिन भी हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। आज नमाज के दौरान हजारों के मजमे में कुछ ही देर में कई ट्रक गन्ने की बिक्री हो जाती है। ईदगाह पुलकोहना के आसपास मेले जैसे माहौल अगर है तो ये बुजुर्गों की देन है, न उन्होंने ऐसी परम्परा शुरू की होती और न ही हम लोग उनकी मिल्लत को आगे बढ़ा पाते।
वाराणसी में लाखों बुनकर नमाज अदा करते हैं। आखिर यह अगहनी जुमा कब शुरू हुआ इसका कोई साबित इतिहास नहीं है। क्षेत्र के बुज़ुर्ग फखरुद्दीन अंसारी ने बताया कि माना जाता है कि अगहनी जुमे की नमाज पढने का दौर बादशाह अकबर के जमाने से चला आ रहा है। इस जुमे की नमाज की खास बात ये है की हिंदुस्तान में सिर्फ बनारस में ही यह नमाज अदा की जाती है।
![Anurag Anurag](/images/authorplaceholder.jpg)