काशी नगरी की बात ही निराली ,है क्योंकि बाबा की नगरी में हर त्योहार उत्सव होता है। काशीवासियों के अलबेले मिजाज की ही तरह यहां की होली भी अड़भंगी होती है। भला हो भी क्यों ना, महादेव की नगरी जो है। जिसतरह बाबा को अडंभगी कहा जाता है ठीक वैसे ही उनके भक्त भी है। जहां पूरे देश में होली रंग-गुलाल से खेली जाती है, वहीं दूसरी वाराणसी में काशी के मणिकर्णिका घाट पर होली चिता भस्म के राख से होती है। मान्यता अनुसार रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन आज महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर महादेव ने अपने गणों और भक्तों के साथ धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेली।

यह है पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के ससुराल पक्ष के अनुरोध पर रंगभरी एकादशी के दिन उनके गौने में पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी, शैव-साक्त सहित अन्य गण शामिल नहीं आ पाते हैं। बाबा विश्वनाथ तो सभी के हैं और सभी पर एकसमान कृपा बरसाते हैं। इसलिए गौने में शामिल न होने पाने वाले अपने गणों को निराश नहीं करते हैं। बल्कि, उन्हें गौने के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका पर बुलाकर उनके साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं।

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Updated On 21 March 2024 10:00 AM GMT
Ankita Yaduvanshi

Ankita Yaduvanshi

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