चैत्र नवरात्रि : छठवां दिन है माता कात्यायनी को समर्पित, चौक क्षेत्र में संकठा मंदिर के पीछे है माता का प्राचीन मंदिर
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वाराणसी। चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन मां दुर्गा के षष्ठम स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा होती है। काशी में माँ का मंदिर चौक क्षेत्र में स्थित संकठा मंदिर के पास स्थित है। ऐसी मान्यता है कि माता को हल्दी और कुमकुम चढाने से सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है खास तौर से माता को हल्दी और कुमकुम का लेपन करने से कुवारी कन्याओ को मन चाहा वर मिलता है। इसी मान्यता के अनुसार मन में अपार श्रद्धा लिए भक्त कतारों में लग कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए माता के दरबार पहुंच रहे सुबह से ही माँ कात्यायनी देवी के दर्शन को श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। हाथों के धुप दीप नैवैद्य , नारियल , पुष्प को माँके चरणों में अर्पित कर सभी मे सभी ने मां को शीश नवाया।
कहा जाता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां कात्यायनी का स्वरूप चमकीला और तेजमय है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में रहता है। वहीं नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। मां कात्यायनी के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार धारण करती हैं व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित रहता है।
ऐसी मान्यता है कि कत नामक ऋषि की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर नवदुर्गा उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्मी भगवती ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और दशमी के दिन महिषासुर का वध किया था।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी जातक देवी कात्यायनी की पूजा पूरी श्रद्धा से करता है, उसे परम पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मां कात्यायनी को पूजन में शहद का भोग लगाना चाहिए। इससे मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं।
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