रामनगर की रामलीला का चौथा दिन : भाई लक्ष्मण संग जनकपुर देखने पहुंचे प्रभु श्री राम, दोनों भाई का मनमोहक रुप देख नगरवासी हुए मोहित
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वाराणसी। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के चौथे दिन प्रभु श्री राम भाई लक्ष्मण के साथ गुरू विश्वामित्र की आज्ञा लेकर जनकपुर पहुंचे। इस दौरान सभी स्त्रियां उनके रुप को देखते ही मोहित हो गईं। लीला के इन्हीं प्रसंगों का मंचन शुरु हुआ। जनकपुर में हर कोई दोनों भाईयों के रंगरूप को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। स्त्रियां तो यह कहने से भी नही चुकी कि धनुष यज्ञ की प्रतिज्ञा तोड़ कर राजा जनक को सीता का विवाह इन्हीं से कर देना चाहिए।
मुनि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के मन की बात जानने के बाद उनसे संकोच छोड़कर अपने मन की बात कहने को कहते हैं। जिस पर राम कहते हैं कि लक्ष्मण जनकपुर देखना चाहते हैं, लेकिन संकोच बस आपसे कुछ कह नही पा रहे हैं। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं इनको जल्दी से नगर दिखा लाऊं। राम की बात सुनकर मुनि आज्ञा देते हैं। दोनों भाई जनकपुर देखने निकले तो उनको देखकर वहां की स्त्रियां उन पर मोहित हो गई और उनकी सुंदरता का बखान करने लगी। अष्ठ सखी संवाद होता है। सीता की आठो सखियां अपने अपने ढंग से उनकी सुंदरता का बखान करती हैं।
श्रीराम रंगभूमि की प्रशंसा करते हैं। दोनों भाई वापस मुनि विश्वामित्र के पास आकर संध्या वंदन करके शयन करते हैं। प्रातः उठकर दोनों भाई मुनि के आज्ञा से उनके लिए पूजा के फूल लाने के लिए जाते हैं। उसी समय सीता जी सखियों के साथ मां गिरिजा के पूजन के लिए जाती हैं। सखियां उन्हें चारों ओर से घेरे रहती हैं। मां गिरजा की स्तुति करके सीता जी अपने लिए योग्य वर मांगती है, तभी मां गिरिजा उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देती हैं।
उसी समय सखियां एक बार फिर राम और लक्ष्मण की सुंदरता का बखान करते हुए उनसे कहती हैं कि मां गिरिजा का ध्यान बाद में करना पहले इन राजकुमारों को देखो। सीता जी आश्चर्यचकित होकर देखने लगती हैं। सीता के आभूषण की आवाज सुनकर राम का मन सीता के लिए लुभा जाता है। दोनों एक दूसरे को देखतें हैं। सीता वापस जनकपुर जाती हैं। दोनों भाई फूल लेकर मुनि के पास वापस लौट आते हैं। इसके बाद आरती के साथ चौथे दिन की लीला को यही विश्राम दिया जाता है।
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