रानगर की रामलीला का तीसरा दिन : रेनकोट पहन कर प्रभु श्रीराम ने किया ताड़का व सुबाहु का वध, अहिल्या को किया श्राप मुक्त
वाराणसी। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के तीसरे दिन विश्वामित्र आगमन, ताड़का सुबाहु वध, मारीच निरसन, अहिल्या तारण, गंगा दर्शन, मिथिला प्रवेश, श्रीजनक मिलन लीला का मंचन किया गया। लीला के दौरान बारिश हो रही था, इसके बावजूद आस्थावान डटे रहे। कीचड़ के कारण मूल स्थान से थोड़ा हटकर ताड़का वध की रामलीला हुई। धरती को राक्षसों से मुक्त करने के लिए अवतरित प्रभु श्रीराम ने ताड़का वध से इसका श्रीगणेश किया। राक्षसों का वध कर ऋषियों-मुनियों की यज्ञादि की राह निष्कंटक की।
शनिवार शाम रामलीला अयोध्या से चल कर जनकपुर की ओर पहुंची। प्रसंगानुसार विश्वामित्र के आगमन से रामलीला की शुरुआत हुई। राक्षसों से परेशान मुनि विश्वामित्र संत समाज की रक्षा के लिए राजा दशरथ की शरण में पहुंचते हैं। आवाभगत के बाद वह अपने अयोध्या आने का प्रयोजन बताते हैं और राक्षसों के उत्पात से यज्ञ में बाधा की जानकारी देते हैं। साथ ही इससे मुक्ति के लिए राम-लक्ष्मण को साथ ले जाने का आग्रह करते है। दशरथ जी यह सुन परेशान हो जाते और कहते हैं उनके बालक सुकुमार है, राक्षसों से कैसे लड़ेंगे। पहले तो वे इंकार कर देते हैं, लेकिन गुरु वशिष्ठ के समझाने पर दशरथ जी श्रीराम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ जाने की आज्ञा देते हैं।
मुनि विश्वामित्र के साथ गए दोनों भाई उनके यज्ञ की रक्षा करते हैं। वन में राक्षसी ताड़का हुंकार भरते हुए प्रभु श्रीराम की ओर दौड़ पड़ती है। घनघोर युद्ध के बाद प्रभु श्रीराम के एक बाण से ही उसका प्राणांत हो जाता है। श्रीराम -लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र से भूख-प्यास से विचलित न होने एवं बल प्राप्ति की मंत्र विद्या प्राप्त करते हुए ऋषियों से निर्भय होकर यज्ञ करने को कहते हैं। ताड़का का पुत्र मारीच सेना लेकर श्रीराम से युद्ध करने आता है लेकिन प्रभु के बिना फल वाले बाण से वह समुद्र पार लंका में जा गिरता है। श्रीराम सुबाहु का उसकी सेना समेत वध करते हैं। हर्षित देवगण आकाश से प्रभु की जयकार करते हैं।
विश्वमित्र श्रीराम-लक्ष्मण को राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर के बारे में बताते हैं। वन के रास्ते में एक शिला देख जिज्ञासु श्रीराम को विश्वामित्र, गौतम ऋषि द्वारा अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप देकर शिला बनाने की कथा सुनाते हैं। ऋषि की आज्ञा से श्रीराम शिला को पैरों से स्पर्श करते हैं और अहिल्या प्रकट हो तर जाती हैं। गुरु विश्वामित्र संग राम-लक्ष्मण का आगमन सुन राजा जनक उनका स्वागत करते हैं। विश्वामित्र समेत राम-लक्ष्मण की आरती कर लीला को विश्राम दिया गया।