वाराणसी। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के पांचवें दिन धनुष यज्ञ और परशुराम संवाद से रामलीला का मंचन शुरु हुआ। लीला के दौरान बारिश हो रही था, इसके बावजूद आस्थावान डटे रहे। कीचड़ के कारण मूल स्थान से थोड़ा हटकर रामलीला हुई।बालकाण्ड के दोहों का सस्वर पाठ के साथ लीला में मिथिला नरेश राजा जनक शतानन्द को विश्वामित्र को श्रीराम लक्ष्मण सहित रंगभूमि में पधारने का आमंत्रण देने को कहते हैं।



विश्वामित्र श्रीराम लक्ष्मण के साथ धनुष यज्ञ स्थल पधारते हैं। सभी राजा अपने पोरुष का प्रदर्शन करते हैं। कुछ हंसी का पात्र बनने के डर से शिव धनुष के नजदीक भी नहीं गए। तब राजा जनक गुस्से में आकर कहते हैं कि अगर में जानता कि यह धरती वीरों से खाली है तो में ऐसी प्रतिज्ञा कर अपना उपहास नहीं कराता। इस पर लक्ष्मण आवेश में आ जाते हैं और कहते हैं अगर प्रभु की आज्ञा मिले तो में इस ब्रह्मांड को गेंद सा उठा लूं और कच्चे घड़े की तरह फोड़ दूं । मुनि विश्वामित्र श्रीराम से जनक की चिंता कम करने के लिए कहते हैं।

इसके बाद प्रभु श्रीराम धनुष तोड़ने के लिए चल देते हैं। लक्ष्मण पैर से पृथ्वी दबा लेते हैं। तोप की गर्जना के साथ प्रभु धनुष तोड़ देते हैं। तब सीता रंगभूमि पहुंचती हैं और श्रीराम के गले में जयमाल डाल देती हैं। इस दौरान परशुराम शिव का धनुष टूटा देख क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध देख सारे राजा भाग खड़े होते हैं।



परशुराम कहते हैं कि जिसने धनुष तोड़ा है वह सामने आए वर्ना धोखे में सब मारे जाएंगे। लक्ष्मण और परशुराम के बीच देर तक संवाद होता है। तब श्रीराम परशुराम से कहते हैं कि सब तरह से हम आपसे हारे हैं। अतः आप अपराध को क्षमा कीजिये । वह धनुष पुराना था छूते ही टूट गया। भगवान परशुराम रमापति का धनुष श्रीराम को देकर खींचने के लिए कहते हैं। उसकी प्रत्यंचा श्रीराम के हाथ में आते ही चढ़ जाती है। परश्राम का सन्देह दूर हो जाता है। राजा जनक नगर और मंडप आदि सजाने का आदेश देते है। आरती के बाद पांचवें दिन की लीला समाप्त होती है।

Ankita Yaduvanshi

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