वाराणसी। आम तौर पर श्मशान घाट पर मातम का माहौल देखने को मिलता, लेकिन नवरात्री की सप्तमी तिथि की रात वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर न सिर्फ मनोरंजन की महफ़िल सजती है बल्कि नगर वधुएं अपनी मर्जी से यहां नृत्य करने आती है, क्योंकि मान्यता है की अगर नगर वधुएं आज की रात यहाँ नृत्य करती हैं तो उन्हें अगले जन्म में इज्जत भरी जिंदगी जीने का सौभाग्य मिलता है।



पूरे महाश्मशान घाट को दुल्हन की तरह सजाया गया था। एक तरफ नृत्य सगीत के लिए मंच लगा था तो दूसरी तरफ धू-धू करके चिताएं भी जल रही थी, लेकिन श्मशान में सजने वाली नृत्य-संगीत की इस महफ़िल का इतिहास राजा मानसिंह से जुड़ा हुआ बताया जाता है। पूरे साल इस महाश्मशान में रहने वाले मातमी सन्नाटे को भेदने के लिए वाराणसी के लोंगो ने इसे परंपरा का रूप दे दिया है जिसे सैकड़ों साल पुराना भी बताया जाता है।

सैकड़ों वर्षों से चली आ रही ये परंपरा

इस श्रृंगार महोत्सव के प्रारंभ के बारे में विस्तार से बताते हुए गुलशन कपूर ने कहा कि बाबा नाग नाथ मंदिर के महन्त यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। जिसमें यह कहा जाता हैं कि राजा मानसिंह द्वारा जब बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने को तैयार नहीं हुआ था। हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है।



इसी कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुःखी हुए, और यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगरवधुओं तक भी जा पहुंची तब उन्होंने डरते- डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता हैं तो काशी की सभी नगर वधुएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है।

यह संदेश पा कर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और सम्मान नगर वधूओं को आमंत्रित किया गया और तब से यह परम्परा चल निकली, वहीं दूसरे तरफ नगर वधुओं के मन मे यह आया की अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं तो उनके इस नरकीय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा फिर क्या था आज सैकड़ों वर्ष बितने के बाद भी यह परम्परा जिवित है और बिना बुलाये यह नगर वधुए कहीं भी रहे चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को यह काशी के मणिकर्णिका घाट स्वयं आ जाती है।



वहीं नगर वधु ने बताया कि एक तरफ मोक्ष के लिए जल रही चितायें तो दूसरी तरफ इस जन्म के पापों से मुक्ति के लिए ठुमके लगा रही ये नगरवधुएं हर वर्ष इस श्मशान से अपने इस जन्म से मोक्ष कि मनोकामना लिए जाती है।

Ankita Yaduvanshi

Ankita Yaduvanshi

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