काशी से गंगा जमुनी तहजीब का संदेश : नमाज के बाद मुस्लिम बंधुओं ने देखी लाटभैरव की रामलीला
![काशी से गंगा जमुनी तहजीब का संदेश : नमाज के बाद मुस्लिम बंधुओं ने देखी लाटभैरव की रामलीला काशी से गंगा जमुनी तहजीब का संदेश : नमाज के बाद मुस्लिम बंधुओं ने देखी लाटभैरव की रामलीला](https://varanasitoday.com/h-upload/2023/10/18/362877-namaj.webp)
पूरब में मंगल भवन अमंगल हारी, और पश्चिम में अल्लाह हु अकबर की गूंज ने बनारस की आबो हवा को गंगा - जमुनी तहजीब के साथ सराबोर कर दिया। ऐसा अनोखा दृश्य जब आदि लाट भैरव रामलीला के दसवें दिन देखने को मिला तो रोम- रोम रोमांचित हो उठा। मंगलवार की शाम को 4:45 बजे से ही रामलीला के पात्रों के साथ नमाजियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। मानस की चौपाई सीता चरन चोंच हति भागा, मूढ़ मंदमति कारन कागा... मुखर हो रहा थी, वहीं पश्चिम में दिशा में मगरिब की अजान में अल्लाह हू अकबर... गूंज रहा था। ऐसा लग रहा था मानो ईश्वर का निराकार रूप साक्षात स्वरूप में दर्शन दे रहा हो।
इस खूबसूरती को देखने के लिए काशीवासियो की भीड़ लगी हुई थी। पांच सौ वर्षों का इतिहास समेटे हुए लाटभैरव की रामलीला ने काशी से पूरे देश को गंगा जमुनी तहजीब का संदेश भी दिया। मिसाल लाट भैरव और लाट की मस्जिद के चबुतरे पर एक साथ होने रामलीला और मगरिब की नमाज़ कौमी एकता का अद्भुत नजारा पेश करती हैं। नमाज के पहले और बाद में मुस्लिम रामलीला के दर्शक बन कर खड़े थे। रामलीला और अल्लाह पाक के इबादत को एक साथ होते हुए देख कर वो लाइन याद आती हैं कि "हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं गंगा तेरे पानी में वजू करके...
गोस्वामी तुलसीदास और मेघा भगत के अनुष्ठान में हिंदुस्तान की आत्मा नजर आती है। पिछले 40 सालों से लीला से जुड़ा हूं लेकिन आज तक ना तो प्रसंग बदले और ना ही स्थान। 480 साल पुरानी लीला का यह स्वरूप असली हिंदुस्तान के दर्शन कराता है।
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