वाराणसी। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी काशी में सैकड़ों वर्षो पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाएगा, बसंत पंचमी के पावन पर्व पर महादेव का तिलकोत्सव होगा। इस दौरान बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत प्रतिमा को दूल्हे के रूप में तैयार किया गया। बाबा का तिलकोत्सव विश्वनाथ गली में टेढीनीम महंत आवास पर होगा। तिलकोत्सव के दौरान महिलाएं मंगल गीत गाएंगी, परंपरागत सलीके से शहनाई की मंगल ध्वनि और डमरुओं के निनाद पर हर एक रस्मों को पूरा किया जाएगा।

महंत आवास पर होगा बाबा की पंचबदन रजत प्रतिमा का तिलकोत्सव

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के अनुसार, शिवमहापुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और स्कंधपुराण के प्रसंगों के आधार पर ही तिलकोत्सव मनाया जाता है। ‘बंसत पंचमी पर तिलकोत्सव के पूर्व भोर में 4 बजे से 4:30 बजे तक बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत मूर्ति की मंगला आरती होगी। सुबह के 6 से 8 बजे तक 11 वैदिक ब्राह्मणों द्वारा चारों वेदों की ऋचाओं का पाठ होगा। बाबा का दुग्धाभिषेक करने के बाद फलाहार का भोग अर्पित किया जाएगा। दोपहर भोग आरती के बाद बाबा विश्वनाथ की रजत प्रतिमा का विशेष राजसी श्रृंगार के बाद शाम 5 बजे से प्रतिमा का दर्शन किया जा सकेगा।

बुधवार की शाम 7 बजे लग्न के अनुसार, बाबा के तिलक की रस्में पूरी की जाएगी। डॅा. कुलपति तिवारी ने कहा कि बाबा की दो प्रतिमा है एक चल जो मेरे पास रहती है और दूसरी अचल प्रतिमा जो बाबा दरबार में है। चल प्रतिमा वर्ष में तीन बार ही मेरे आवास से सज धज कर निकालती है, एक सावन पूर्णिमा को दूसरे महाशिवरात्रि को फिर रंग भरी एकादशी को। वसंत पंचमी के दिन आवास पर ही तिलकोत्सव की रस्म पूरी की जाती है। दक्ष प्रजापति के रूप में वह खुद बैठ कर बाबा के तिलकोत्सव की रस्म निभाते है।

लोकमान्यताओं के अनुसार शिवविवाह के पूर्व वसंत पंचमी के दिन दक्ष प्रजापती ने पौराणिक काल के कई मित्र राज-महाराजाओं के साथ कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव का तिलक किया था। उसी आधार पर लोक में इस परंपरा इसका निर्वाह किया जाता है। काशी में इस वर्ष इस परंपरा के निर्वहन का 359वां वर्ष है।

Ankita Yaduvanshi

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