बनारस यानी काशी धर्म की नगरी है। यहां गंगा, चारों तरफ मंदिर और मंदिर से आती घंटियों की आवाज़ पूरे वातावरण को धर्ममयी बना देती है। इस शहर की धार्मिक कशिश से विदेशी तक खिंचे चले आते हैं। मगर इसी काशी में कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं जो आपको अंदर तक झकझोंर सकती हैं। एक जगह है वाराणसी का मुक्ति भवन। जहां देश भर से सिर्फ लोग आकर ठहरते हैं वो भी मौत के इंतज़ार के लिए।

ऐसी मान्यता है कि काशी में मृत्यु से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यता है की महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। इन्हीं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए मणिकर्णिका घाट के निकट श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में मुमुक्षु भवन (बैद्यनाथ भवन) का भी निर्माण कराया गया है। यहां बीमार, आसक्त बुजुर्गों की सेवा नि:शुल्क की जाती है।

काशी में मुमुक्षु भवन का काफी पौराणिक महत्व है। जीवन का अंतिम समय काशी पुराधिपति भगवान शिव के धाम में उनके चरणों में व्यतीत करने को मिले तो लोग अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं। मुमुक्षु भवन को संचालित करने वाली संस्था के मैनेजर कौमुदीकांत आमेटा ने बताया कि अभी तक 45 वृद्ध लोग यहां प्रवास कर चुके हैं।जिसमें से चार बुजुर्गों को मुक्ति मिली है। एक बार में करीब एक महीने तक रहने की व्यवस्था दी जाती है।

काशीवास करने आए वृद्धजन यहां नियमित कीर्तन-भजन और बाबा के दर्शन करते हैं। दो मंजिला ये इमारत 1161 वर्ग मीटर में बना है।श्री काशी विश्वनाथ धाम में गंगा के छोर पर बने पहली मंजिल पर महिला एवं दूसरी मंजिल पर पुरुष अलग वार्ड है। जबकि पहली मंजिल पर पति-पत्नी के साथ रहने की भी व्यवस्था है। बता दें कि बनारस का यह तीसरा मुमुक्षु भवन है जहां लोग मोक्ष की कामना से रह रहे हैं।

तीन मंजिला इस भवन में 40 बेड

मुमुक्षु धर्मशाला में 40 बेड की डोरमेट्री का निर्माण किया गया है। वहां 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को एंट्री मिल सकती है। ये लोग अपनी मृत्यु तक यहां रह सकते हैं। पूरी व्यवस्था पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर दी जाती है। आवेदन करने वालों में मृत्युशय्या पर पड़े लोगों को वरीयता दी जाती है। गंभीर रूप से बीमार लोगों को बाबा के दर पर प्राण त्यागने का अवसर दिया जाता है। इस प्रकार के लोग अगर आते हैं। मुमुझु भवन में कोई सीट खाली नहीं रहती है तो स्वस्थ वालों को अस्थायी रूप से स्थानीय वृद्धाश्रम में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

Vipin Singh

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