प्राकृतिक कीटनाशक बनाकर आत्मनिर्भर बनीं आदिवासी महिलाएं

Update: 2023-05-31 10:51 GMT








-नीम की पत्तियों व अन्य सामग्रियों से तैयार किया कीटनाशक

-कीटनाशक से 1.60 लाख रुपए का बचत कोष भी बनाया

सूरत/अहमदाबाद, 31 मई (हि.स.)। राज्य की महिलाएं अपनी उद्यमिता से आत्मनिर्भर बनने के साथ प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों के लिए मददगार साबित होने लगी है। राज्य में प्राकृतिक खेती को लेकर सरकार किसानों को प्रोत्साहित करती है तो प्राकृतिक खेती के लिए उपयोग में आने वाले कीटनाशक, खाद बनाने वालों को भी हर तरह से प्रशिक्षण और सहायता प्रदान किया जा रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण सूरत जिले की उमरपाडा तहसील के बिलवण गांव में देखने को मिलता है। यहां की महिलाओं ने प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाले प्राकृतिक चीजों से कीटनाशक बनाया जो किसानों के लिए उपयोगी साबित हो रहा है।

देशी गाय आधारित खेती का लिया प्रशिक्षण

सूरत जिले की उमरपाडा तहसील आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। यहां के आदिवासी बहुल गांव बिलवण गांव की महिलाएं जीवामृत, धनजीवामृत और अग्निअस्त्र दवाओं का उत्पादन कर उसकी बिक्री करती हैं। बिलवण गांव की वैष्णवी सखीमंडल ने 2.95 लाख रुपए का अग्निअस्त्र कीटनाशक की बिक्री कर 1.78 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया।

सखीमंडल की प्रमुख सुमित्रा वसावा कहती हैं कि हम 10 महिलाएं हैं, जिन्होंने 20 अक्टूबर, 2020 को सखीमंडल की शुरुआत की। गेल कंपनी के सीएसआर के तहत केयर प्रोजेक्ट के जरिए देशी गाय आधारित प्राकृतिक कृषि के लिए जीवामृत, धनामृत और अग्निअस्त्र बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया। पूरा गांव पशुपालन से जुड़ा है। इस कारण घर-घर गाय होने से जीवामृत और प्राकृतिक कीटनाशक, खाद बनाने में काफी मदद मिली।

मिशन मंगलम योजना से मिली मदद

सुमित्रा बताती हैं कि शुरुआत में हमने प्राकृतिक दवाओं का निर्माण कर अपने खेतों में छिड़काव किया। धीरे-धीरे उनके सखीमंडल का क्षेत्र में काफी नाम होने लगा। इसके बाद लोगों से ऑर्डर आने लगे। खासतौर से प्राकृतिक खेती के लिए अग्निअस्त्र नाम की दवा की मांग बढ़ने पर सखीमंडल ने इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन करना तय किया। सरकार की मिशन मंगलम योजना अंतर्गत सरकार से 30 हजार रुपए का रिवॉल्विंग फंड प्राप्त किया।

अग्निअस्त्र बनाना सीखा

अग्निअस्त्र बनाने की विधि बताते हुए कहती हैं कि 10 लीटर गौमूत्र लेकर इसमें एक-एक किलो बराबर भाग में तम्बाकू, लहसन, मिर्च और नीम की पत्ती का मिश्रण कर धीमी आंच में चार उबाल आने तक उबाला जाता है। इसके बाद 48 घंटे तक उसे रखकर अग्निअस्त्र तैयार किया जाता है। एक बार सूरत के समीप के किसानों से अग्निअस्त्र बनाने का आर्डर मिलने के बाद जब किसानों ने इसका उपयोग किया तो उन्हें खेती में लाभ पहुंचा। इसके बाद इसकी मार्केटिंग आसपास के गांवों में अपने-आप होने लगी। इसके बाद गांवों समेत अहमदाबाद, डांग, बोडेली आदि दूरदराज क्षेत्रों से भी इसका आर्डर मिला। एक साल में 1415 लीटर अग्निअस्त्र बनाए। एक लीटर की 200 से 230 रुपए कीमत मिली। सखीमंडल ने इसके जरिए 1.60 लाख रुपए का बचत कोष भी इससे बना लिया।

जरूरत पड़ने पर करती हैं मदद

सखीमंडल से जुड़ी महिलाओं को इस राशि से जरूरत होने पर सहायता भी प्रदान की जाती है। हाल में उनकी सखीमंडल को 1 लाख रुपए का कैश क्रेडिट भी मंजूर हो चुका है। उन्होंने बताया कि गांव की महिलाएं खेत-मजदूरी कर रोजाना 100 रुपए तक की आवक प्राप्त करती थी, लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं। महिलाओं की आय भी बढ़ी, वहीं जरूरत पड़ने पर तत्काल रुपए से भी मदद की जाती है। खेती व पशुपालन के अलावा रोजगार के अन्य साधन नहीं होने के बावजूद अब महिलाओं को रोजगार के वैकल्पिक साधन भी मिलने लगे हैं, इससे उनमें आत्मनिर्भरता की भावना जगी है।

हिन्दुस्थान समाचार/महेन्द्र /बिनोद/संजीव

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