-अब तक चमोली जिले के विभिन्न स्थानों पर लगा चुकी पचास हजार से अधिक पौध

गोपेश्वर, 30 मई (हि.स.)। पर्यावरण संरक्षण को लेकर देशभर में जहां कई संस्थाओं के साथ ही समाजसेवी कार्य कर रहे हैं वहीं उत्तराखंड के चमोली जिले के थिरपाक गांव की रहने वाली लक्ष्मी रावत महिलाओं के साथ मिलकर पर्यावरण को बचाने के लिए निरंतर कार्य कर रही हैं। लक्ष्मी अब तक स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के साथ मिलकर जिले के विभिन्न स्थानों पर 50 हजार से अधिक पौध रोपित कर चुकी हैं।

चमोली जिला पहले से ही पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रदेश ही नहीं देश में भी अपनी पहचान बनाए हुए है। वनों को बचाने का चिपको आंदोलन हो या पर्यावरण संरक्षण का कोई अन्य आंदोलन। चमोली जिला हर बार अग्रणीय भूमिका में रहा है। यही वजह है कि यहां का जनमानस पर्यावरण को लेकर काफी संवेदनशील है और पर्यावरण को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करता रहता है। इसी कड़ी में थिरपाक गांव की लक्ष्मी रावत भी महिलाओं के साथ मिलकर पर्यावरण को बचाने के लिए उन्हें जागरूक करने के साथ ही पौधरोपण कर उन्हें संरक्षित करने के लिए भी प्रयासरत हैं।

लक्ष्मी रावत कहती हैं कि जंगल सही मायने में महिलाओं का मायका होता है। जहां से उसका सबसे ज्यादा जुड़ाव होता है। महिलाएं घास काटने से लेकर पेड़ से पत्तों को निकालने से पहले उसे हाथ अवश्य जोड़ती हैं जो हमारी परंपरा में भी है। इसके पीछे उनका मकसद सिर्फ यह होता है कि वह पेड़ पौधों को नाराज नहीं करना चाहती हैं और दोबारा भी वहां आकर खुशी से चारापत्ती ले जा सकें।

उनका कहना है कि उन्हें पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली। जो भोर होते ही चारापत्ती लेने के लिए जंगल चले जाते थे और देर सांय तक घर लौटते थे। इससे उसके मन में अपने आसपास चारापत्ती के साथ ही अन्य पौधों को रोपित करने की बात जगी और उन्होंने गांव की महिलाओं के साथ इस कार्य को आरंभ किया। आज उनकी मुहिम कामयाब हो रही है और महिलाएं इस कार्य में जुटी हुई हैं।

लक्ष्मी बताती हैं कि वे पर्यावरण संरक्षण के साथ ही महिलाओं को स्वरोजगार की दिशा में भी प्रशिक्षण दे रही हैं, जिसमें पशुपालन, मौन पालन, सब्जी उत्पादन आदि शामिल है। इससे महिलाओं की आर्थिकी में भी सुधार हो रहा है और सरकार की मंशा के अनुसार महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी आगे बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने में नंदाकिनी स्वयं सहायता समूह और वन विभाग ने उन्हें काफी सहयोग दिया है। वे बताती हैं कि इस कार्य को करने में मुश्किलें भी आती हैं, लेकिन उनके परिवार का उन्हें काफी सहयोग मिलता है। उनका यह भी कहना है कि पर्यावरण को बचाने में सबसे ज्यादा मददगार महिलाएं ही हो सकती हैं, इसलिए महिलाओं को इसके लिए आगे आना चाहिए ताकि हम अपने पर्यावरण को बचा सके।

हिन्दुस्थान समाचार/जगदीश/रामानुज

Updated On 30 May 2023 4:13 PM GMT
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