पूर्वी चंपारण,19सितंबर(हि.स.)।महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के नारायणी कक्ष में हिंदी साहित्य सभा की ने मंगलवार को तुलसीदास की सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।जिसमे विशेष वक्ता के रूप में कवि और गीतामृत के रचयिता डॉ.सीताराम झा उपस्थित थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने की ।

डॉ.सीताराम झा ने कहा कि ज्ञान का उदय सर्वप्रथम आर्यावर्त में हुआ है। हमारी संस्कृति में पहली गंगा गोमुख से निकलकर समुद्र में मिलती है लेकिन दूसरी गंगा हमारे देश की सामाजिक-सांस्कृतिक गंगा है जो अपने ज्ञान के रूप में प्रवाहमय है,जिसकी झलक रामचरितमानस के माध्यम से हमें देश ही नहीं विदेश में भी प्रवाहित हो रही है।

उन्होंने कहा कि एक आदर्श पारिवारिक चेतना की झलक रामचरितमानस में मिलती है, क्योंकि राम भगवान होकर भी शबरी को माता कहना पसंद करते हैं, पशु पक्षियों से सीता के बारे में पूछते हैं,राम जटायु को दशरथ की भांति सम्मान देते हुए उनका अंतिम संस्कार करते हैं । रामचरितमानस हमारे समाज का समन्वयवादी एवं सांस्कृतिक ग्रन्थ है।

हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते कहा कि रामायण में मनुष्यत्व अधिक है और रामचरितमानस में ईश्वरत्व अधिक है। तुलसीदास की सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि ही रामचरितमानस को काव्य से शास्त्र की ओर ले जाती है।काव्य और शास्त्र की एकता रामचरितमानस की विशेषता है।

हिन्दुस्थान समाचार/आनंद प्रकाश/गोविन्द

Updated On 20 Sep 2023 12:07 AM GMT
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