रायपुर, 26 मई (हि.स.)। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव व विधायक विकास उपाध्याय ने देश के गृह मंत्री अमित शाह के असम में दिए उस वक्तव्य का तार्किक जवाब दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बगैर राज्यपाल के छत्तीसगढ़ विधानसभा का भूमिपूजन किया था।

विकास उपाध्याय ने अपने जवाब में कहा कि, देश के गृहमंत्री को भारत के संविधान की सही व्याख्या ही नहीं आती। उन्हें पता होनी चाहिए कि राज्यपाल एक मनोनीत पद है। उसका निर्वाचन नहीं मनोनयन होता है। जबकि राष्ट्रपति सांसदों और विधायकों द्वारा निर्वाचित लोकतांत्रिक पदाधिकारी हैं ऐसे में वे राष्ट्रपति की हैसियत को राज्यपाल से कर भारतीय लोकतंत्र को धोखा नहीं दे सकते।

विकास उपाध्याय ने कहा कि, प्रधानमंत्री इतिहास में अपना नाम दर्ज करने भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति को दरकिनार कर 28 मई को संसद के नए भवन सेन्ट्रल विस्टा का स्वयं उद्घाटन करने जा रहे हैं, जबकि सही मायने में इसके हकदार राष्ट्रपति को होना चाहिए।

विकास उपाध्याय ने कहा कि, भाजपा अपने को सही साबित करने कई राज्यों में विधानसभाओं के भवन का भूमिपूजन अथवा उद्घाटन राज्यपालों के रहते मुख्यमंत्री तथा गैर संवैधानिक पदाधिकारियों के द्वारा किये जाने की बात उठा रही है। उन्होंने बताया राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 155 के अनुसार राष्ट्रपति नियुक्त करता है और साथ में यह भी प्रावधानित है कि अनुच्छेद 156 के तहत राज्यपाल की कार्यावधि राष्ट्रपति की मर्जी पर निर्भर होती है। राष्ट्रपति सांसदों और विधायकों द्वारा निर्वाचित लोकतांत्रिक पदाधिकारी हैं। जबकि राज्यपाल एक मनोनीत व्यक्ति होता है।उसका निर्वाचन नहीं मनोनयन होता है,वहीं राष्ट्रपति देश के लिए संवैधानिक प्राधिकारी होता है और एक मात्र व्यक्ति ही हो सकता है। जबकि राज्यपाल एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल ‘नियुक्त‘ किया जा सकता है। राष्ट्रपति जब चाहें उन्हें हटा सकते हैं। अन्य प्रदेश में तबादला भी किया जा सकता है।

विकास उपाध्याय ने साफ शब्दों में कहा, भले ही राज्यपाल संवैधानिक पद है पर कई मामलों में राज्य की विधानसभा और मंत्रिपरिषद में उनका दखल नहीं होता, जबकि राष्ट्रपति के लिए ऐसा नहीं है और इन परिस्थितियों में भी होता है। अर्थात निर्वाचन और मनोनयन में बहुत अंतर होता है। ऐसे में बीजेपी राष्ट्रपति को राज्यपाल की हैसियत में आंक रही है तो यह सच्चे लोकतंत्र का उदाहरण नहीं है। संसद के नए भवन की उद्घाटन करने का अधिकार सिर्फ देश के राष्ट्रपति को है, न कि प्रधानमंत्री को।

हिन्दुस्थान समाचार/ गायत्री प्रसाद

Updated On 26 May 2023 8:08 PM GMT
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