जगदलपुर, 19 सितंबर (हि.स.)। बस्तर संभाग के ग्रामीणों की अनूठी परंपराओं एवं मान्यताओं के लिए जाना जाता है। बस्तर के ग्रामीण आमतौर पर अपनी और फसलों की सुरक्षा के लिए अनुष्ठान कर फल-फूल, मिष्ठान इत्यादि देवताओं को भेंट करते हैं, किंतु बस्तर की कचरापाटी परगना के ग्रामीण अपनी फसलों को कीट व्याधि से बचाने के लिए कंकालीन माता के चरणों में कीड़े-पतंगों से भरा पात्र दोना अर्पित करते हैं। इस विश्वास के साथ कि यह कीट-पतंगे अब उनकी फसलों में नहीं लौटेंगे और अच्छी फसल होगी।

कंकालिन माता मंदिर के पुजारी पदमनाथ ठाकुर के अनुसार बस्तर जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर ग्राम बिरनपाल में कंकालिन जंगल है। इस जंगल के मध्य में माता कंकालिन का वर्षों पुराना मंदिर है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्लपक्ष के दिन 84 गांव के ग्रामीण नवाखानी तिहार मानते हुए माता बोहरानी रस्म पूरी करते हैं। इस रस्म के तहत खेतों में व्याप्त कीट पतंगों को कंकालिन गुड़ी लाते हैं और माता के चरणों में अर्पित करते हैं।

ग्राम बड़े कवाली से दल बल के साथ कंकालिन जंगल पहुंचे जयमन, बड़े मुरमा के कैलाश नाग, सारगुड़ के नरसिंह कश्यप ने बताया कि खेतों में कीट व्याधि न हो और अच्छी फसल के लिए कंकालिन माता के चरणों में कीट पतंगों के अर्पण की पुरानी परंपरा का निर्वहन प्रतिवर्ष किया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे

Updated On 20 Sep 2023 12:09 AM GMT
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