-प्रगतिशील किसान राम किरत ने कहा, प्रकृति से बिना छेड़छाड़ किये जीरो बजट की खेती है प्राकृतिक खेती

लखनऊ, 20 नवम्बर (हि.स.)। हम पहले से ही सुनते आ रहे हैं कि केंचुए खेत को बलवान बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, फिर भी आज खेतों में केंचुए देखने को नहीं मिलते। इसका कारण है, रासायनिक खादों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग, जिससे केचुएं व अन्य लाभकारी जीवाणु भी खेतों से गायब हो चुके हैं। यह कहना है कि सुलतानपुर जिले के प्रगतिशील कृषक राम किरत मिश्र का।

111 पुरस्कार पा चुके राम किरत मिश्र का कहना है कि प्रकृति से बिना छेड़छाड़ किये, जीरो बजट की खेती ही प्राकृतिक खेती है। इसमें खेतों की जुताई भी कम की जाती है। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि गहरी जुताई न हो, क्योंकि गहरी जुताई से लाभदायक जीवाणु भी मर जाते हैं।

उनका कहना है कि केचुएं धरती में 15 से 20 फिट तक नीचे चले जाते हैं। मिट्टी को खाकर फिर उसे निकालते जाते हैं। इससे मिट्टी उर्वर बन जाती है। इसके साथ ही मिट्टी में छिद्र हो जाने से उसकी स्वसन प्रक्रिया सुचारू रूप से चलने लगती है। इससे भूमि में पानी संग्रहित होने लगता है। इससे हवा कास संचरण भी होने लगता है।

उन्होंने कहा कि केंचुए पुन: हमारी जमीन को उर्वर बनाने की भूमिका निभाएं, इसके लिए जरूरी है कि हम प्राकृतिक खेती को अपनाएं। इससे खेती की लागत कम होने के साथ ही हम मिट्टी को उर्वर बनाने में सफल हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम रासायनिक खादों की जगह जीवामृत बनाकर खेतों में डालें।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र

Updated On 22 March 2023 11:51 AM GMT
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