वाराणसी। काशी का कण-कण शंकर है। काशी कहते ही लोगों की जुबान पर महादेव का नाम आ जाता है। वैसे तो काशी में महादेव के अनगिनत मंदिर हैं, लेकिन यहां एक मंदिर ऐसा भी है, जो 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे की याद दिलाता है। इस मंदिर का नाम है – पाकिस्तानी महादेव।

वाराणसी के शीतला घाट पर स्थित पाकिस्तानी महादेव का मंदिर बंटवारे की उस स्मृति को संजोये हैं, जो लाखों भारतीयों के 75 वर्ष पुरानी घटना की याद दिला देता है। अपने नाम के कारण लोगों के मन में कौतुहल पैदा करने वाला शिवलिंग लोगों के लिए बहुत बड़ा आस्था का केंद्र है। स्थानीय लोगों के अनुसार, दस्तावजों में भी इस मंदिर का नाम पाकिस्तानी महादेव के नाम से दर्ज है। अब सवाल यह उठता है कि इस मंदिर का नाम पाकिस्तान से क्यों जोड़ा जाता है। तो आये जानते हैं इसके नाम के पीछे का इतिहास-

दिलचस्प है नाम के पीछे की कहानी

सरकारी दस्तावेजों भोलेनाथ की नगर वाराणसी में एक पाकिस्तानी मंदिर भी है। जोकि भोलेनाथ का ही है। इस मंदिर के नाम का जिक्र होने ही 1947 में हुए हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे की यादें ताजा हो जाती हैं और नाम के पीछे का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है।

कहानी शुरू होती है, 1947 के हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के समय से। उन दिनों देश के हालात कुछ ठीक नहीं थे। पूरा देश दंगों की आग में जल रहा था। इसी दौरान लाहौर से दो हीरा व्यापारी जमुना दास व निहाल चंद्र काशी आए थे।

लाहौर, जहां इनका परिवार रहता था, उन्होंने वहीं एक शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे पलायन के समय काशी ले आए। परिवार के साथ जब ये मछोदरी स्थित शीतला घाट पर गंगा किनारे शिवलिंग का विसर्जन करने लगे, तो वहां के कुछ पुरोहितों ने उन्हें विशर्जन करने से रोका और मंदिर की स्थापना कराई। बंटवारे के दौरान लाहौर से लाए गए इस शिवलिंग का लोगों ने नाम भी पाकिस्तानी महादेव रख दिया। जिसे आज भी इसी नाम से पूजा जाता है।


मंदिर के पुजारी अजय कुमार शर्मा ने बताया कि, इस मंदिर की स्थापना के लिए बूंदी स्टेट के अखाड़ा परिषद द्वारा स्थान दिया गया था। जिसे रघुनाथ और मुन्नू महाराज के सहयोग से स्थापित कराया गया। बाद में कई लोगों द्वारा मंदिर की पूजा का दायित्व लिया। 2008 से हम यहां पूजा अर्चना करते हैं। हमारी अनुपस्थिति में परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा नियमित पूजा की जाती है।

स्थानीय नागरिक अमित शुक्ला ने बताया कि वाराणसी के शीतला घाट पर ये मंदिर से हमारी आस्था का केंद्र है। बाबा को पाकिस्तानी महादेव के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में काशी के पुरनिये बताते हैं कि जब पाकिस्तान से बंटवारा हुआ था। लाहौर के रहने वाले व्यापारी वहां से ये शिवलिंग ले कर आ यहां आ गए। यहां राजमंदिर के गोपाल दास जी को ये शिवलिंग मिला और शिवलिंग को यहां स्थापित कर दिया।

आस्था का केंद्र है पाकिस्तानी महादेव का मंदिर

मनीष पाण्डेय ने बताया कि, यह काशी के गंगा तट शीतला घाट पर मन्दिर मौजूद है। जिस समय हमारे देश की सीमाएं बंट रही थीं। 1947 में बंटवारे के वक्त किसी भक्त द्वारा इनको पाकिस्तान के लाहौर से वाराणासी लाया गया था, और यह पाकिस्तानी महादेव तब से यहां विराजमान हैं। इनका नाम पाकिस्तानी महादेव इसलिए पड़ा क्योंकि यह पाकिस्तान से लाये गए थे। लोक मान्यताओं के अनुसार इन्हें पाकिस्तानी महादेव कहा गया। यह मंदिर आस्था का केंद्र है और सावन के विशेष माह में यहां भक्तों का विशेष जमावड़ा रहता है। डाक बम बोल बम समेत तमाम श्रद्धालु यहां आते हैं और भगवान पर गंगाजल चढ़ाकर अपनी मनोकामना पाते हैं।

भक्तों की मुराद पूरी करते हैं बाबा

वाराणसी के शीतला घाट पर विराजमान पाकिस्तानी महादेव भक्तों की हर मुराद को पूरी करते हैं। पाकिस्तानी महादेव के इस मंदिर में हिन्दू-मुस्लिम हर वर्ग के लोग बाबा के दर्शन करने आते हैं। सावन में तो यहां भक्तों का रेला लग जाता है।

बनारसी नारद

बनारसी नारद

Next Story