आज़मगढ लोकसभा में क्यों हुए उपचुनाव, कैसे सपा के गण में भाजपा ने लहराया अपना परचम
आज़मगढ उत्तर प्रदेश का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। राजनीति की दृष्टि से भी आजमगढ़ यूपी का महत्वपूर्ण लोकसभा सीट माना जाता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में आज़मगढ जिला स्थित है। चाहे बात राजनीति की हो या फिर ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। आजमगढ़ को सपा का गण कहा जाता है लेकिन साल 2022 में आजमगढ़ और रामपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने सत्ता पलट दी। सपा के गण में बीजेपी ने अपनी जीत हासिल की और इस वक़्त वर्तमान में आजमगढ़ से सांसद भारतीय जनता पार्टी के दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ है।
मगर क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद साल 1952 शुरू हुए चुनाव के बाद कौन सबसे पहले आजमगढ़ जिले का सांसद चुना गया था? अखिल किन कारणों से आजमगढ़ में हुए तीन-तीन बार उपचुनाव? क्यों आजमगढ़ लोकसभा में देखने को मिली जातीय समीकरण? कैसे बंट गए अखिलेश के लिए मुस्लिम समुदाय के वोट? आइए आपको बताते हैं इससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में और आपको लिस्ट दिखाते हैं कि 1952 से लेकर अब तक आजमगढ़ लोकसभा सीट से कौन-कौन सांसद रहे हैं
आजमगढ़ के पहले सांसद से वर्तमान तक की पूरी लिस्ट
स्वतंत्र भारत में जब साल 1952 में चुनाव की शुरुआत हुई, तब आजमगढ़ लोकसभा सीट से पहले सांसद भारतीय नेशनल कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री रहे। स्वतंत्र भारत में कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री के द्वारा शुरू की गई इस चुनावी बागडोर को इस वक़्त वर्तमान में भाजपा के दिनेश लाल यादव संभाल रहे हैं। आइए देखते हैं पूरी लिस्ट और जानते हैं किसका कब तक रहा कार्यकाल:-
1952 - अलगू राय शास्त्री (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1957 - कालिका सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1962 - राम हरख यादव (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1967 - चंद्रजीत यादव (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1971 - चंद्रजीत यादव (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 - रामनरेश यादव जनता पार्टी
1978 - मोहसिना किदवई (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) - (आई)
1980 - चंद्रजीत यादव जनता पार्टी (सेक्युलर)
1984 - संतोष सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 - रामकृष्ण यादव (बहुजन समाज पार्टी)
1991 - चंद्रजीत यादव (जनता दल)
1996 - रमाकांत यादव (समाजवादी पार्टी)
1998 - अकबर अहमद (बहुजन समाज पार्टी)
1999 - रमाकांत यादव (समाजवादी पार्टी)
2004 - रमाकांत यादव (समाजवादी पार्टी)
2008 - अकबर अहमद (बहुजन समाज पार्टी)
2009 - रमाकांत यादव (भारतीय जनता पार्टी)
2014 - मुलायम सिंह यादव (समाजवादी पार्टी)
2019 - अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी)
2022 - दिनेश लाल यादव (भारतीय जनता पार्टी)
गौरतलब है कि, एक तरफ जहाँ आजमगढ़ को सपा का गण कहा जाता है, तो वहीं दूसरी तरफ इस वक्त भाजपा ने अपना सेंध लगाया है। ऐसे में सियासत के मामले में आजमगढ़ लोकसभ सीट काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां काफी अलटा-पलटी देखने को मिलती है।
आजमगढ़ में क्यों हुआ उपचुनाव
आजमगढ़ जिले में तीन बार उपचुनाव हुआ है। हर बार के उपचुनाव में जनता ने अप्रत्याशित फैसला दिया। पहला उपचुनाव 1978 दूसरा उपचुनाव 2008 और तीसरा उपचुनाव 2022 में हुआ। बता दें कि अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने के लिए वहां से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद आजमगढ़ में उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव वहां से दावेदार बनाया था। वहीं बीजेपी ने निरहुआ को दोबारा मैदान में उतारा था। वहीं जनता ने भाजपा का साथ दिया और निरहुआ को जीत दिलाई। बताते चलें कि 2019 में अखिलेश यादव ने यही आजमगढ़ की सीट बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ को हराकर जीती थी।
क्यों देखने को मिला जातीय समीकरण
आजमगढ़ लोकसभा सीट में यादव और मुस्लिम वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। इसी कारण से इसे समाजवादी का गण कहा जाता है और यहां की जनता अखिलेश यादव का सपोर्ट करती है। आमतौर तो यादव वोटर्स सपा के साथ जाते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी स्थानीय स्तर पर निरहुआ जनता के बीच रहकर काम कर रहे थे। इसका फायदा उन्हें मिला और सपा के कोर वोटर्स भी भाजपा में शिफ्ट हो गए।
आजम खां और अखिलेश यादव के मतभेद का असर
आजम खां और अखिलेश यादव के बीच मतभेद के चलते दोनों के समर्थकों ने कई बार एक-दूसरे पर आरोप लगाया। इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों के वोट बांट गए। यूपी की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने नेताओं पर इसका गहरा असर देखने को मिला। वहीं, निरहुआ पर यादव के साथ-साथ दलित और कुर्मी वोटर्स ने भी विश्वास जताया।