पहले अतीक अहमद और उसके बाद मुख्तार अंसारी...उत्तरप्रदेश के सियासत के दो ऐसे बाहुबली जिन्हें उनके इलाके में रॉबिन हुड कहा जाता था। यूपी पुलिस के रिकॉर्ड में जिनकी छवि अपराधी के तौर पर थी, जो कई बार के सांसद और विधायक थे। अब इस दुनिया में नही रहें। अतीक अहमद की टीवी कैमरे के सामने सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी गई और मुख्तार अंसारी का जेल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अधिकारिक तौर पर यहीं कहा जा रहा बाकि अगर उनके प्रशंसकों और परिवार की माने तो वो इसे हत्या कह रहे हैं। इसमें कितना सच, कितना फ़साना ये हम आपके ऊपर छोड़ देते हैं।

लेकिन आज मुख्तार अंसार के साथ अतीक अहमद का नाम हमने इसीलिए लिया क्योंकि इन दोनों की कहानी जो है, उसकी भूमिका एक तरह से बनती है और इन दोनों पतन भी एक तरह से बनता है। इलाहाबाद में उमेश पाल फिर पूर्वांचल में कृष्णानंद राय.. दोनों की पटकथा में दोनों के भाइयों का ज़िक्र होता है।


एक तरफ अतीक अहमद के भाई असरफ का उमेश पाल से चुनाव हारना और दूसरी तरफ मुख्तार अंसारी के भाई का कृष्णानंद राय से चुनाव हारना... उधर अतीक अहमद का अपने ईगो पर इस बात को लेना और इधर मुख्तार अंसारी का इस मामले को अपनी अना का मसला बना लेना और उसके बाद उनके पत्नियों का लम्बा संघर्ष करना फिर आखिरी में एक रहस्यमयी तरीके से दोनों की मौत हो जाना।

कृष्णानंद राय पर हुई 500 राउंड फायरिंग

हमें लगा आज हम आपको किस्सा सुनाये कृष्णानंद राय के हत्याकांड का...जिसके बाद यह माना जाता है कि मुख्तार अंसारी का सही मायने में पतन शुरू हुआ। ये कहानी जानने के लिए आपको 2005 में चलना होगा। जब तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय के हत्या ने माफिया मुख्तार अंसारी के अपराधिक इतिहास का रुख बदल दिया था। कहा जाता है कि उस दिन कृष्णानंद राय पर 500 राउंड फायरिंग हुई थी। कृष्णानंद राय गोलियों से छलनी हो गए थे। लेकिन क्या और क्यों है मुख्तार अंसारी से कृष्णानंद राय की दुश्मनी?

जिन तीन लोगों की थी संलिप्तता उनका हुआ निधन

हालांकि ये कहानी सुनाने से पहले एक दिलचस्प चीज़ आपको बता दें कि कृष्णानंद राय के हत्याकांड में जिन-जिन लोगों की संलिप्तता थी उनमें एक बड़ा नाम था 'मुन्ना बजरंगी' जिनकी जेल में हत्या हो गई...एक नाम था 'संजीव जीवा' जिनकी कोर्ट में हत्या हो गई और फिर एक नाम था मुख्तार अंसारी जिनकी जेल में हार्ट अटैक से मौत हो गई। मुख्तार के मौत को लेकर चर्चा हो रही, जिसकी सुगबुगाहट काफी तेज है। ये वो तीन नाम थे जो इस हत्याकांड से जुड़े थे।


जैसा कि हमने आपको बताया कि बदले की आग की ये कहानी थी। मुख्तार उस परिवार से आते हैं, जहाँ उनके नाना ब्रिगेडियर उस्मान 1947 की लड़ाई में लड़ते हैं। मुख्तार उस परिवार से आते हैं, जहाँ उनके दादा कांग्रेस के प्रेसिडेंट और गांधी जी के करीबी रहते हैं। मुख्तार उस परिवार से आते हैं, जहाँ उनके पापा लेफ्ट पार्टी के बड़े नेताओं में आते हैं। मुख्तार उस परिवार में आते हैं, जहाँ उनके चाचा देश के उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी होते हैं और उनका बेटा भी शूटिंग में इंटरनेशनल पहचान होती है लेकिन मुख्तार अंसारी की पहचान एक बाहुबली के तौर पर थी, एक अपराधी के तौर पर थी, उनकी पहचान एक सांसद के तौर पर थी, रोबिन हुड गरीबों के मसीहा के रूप में थी, उनकी पहचान एक कातिल के तौर पर थी।

कृष्णानंद राय के साथ 7 अन्य लोगों की हत्या

मुख्तार अंसारी अपराध के दुनिया में एक बेताश बादशाह माना जाता है। 29 नवम्बर 2005 की घटना गाजीपुर जिले के उस वक़्त के विधायक कृष्णानंद राय के साथ सात लोगों की हत्या। कृष्णानंद राय पर 500 राउंड फायरिंग हुई। AK47 का इस्तमाल किया गया। उस बीच कृष्णानंद राय पड़ोस के सियारी गांव एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाने वाले थे। बगल के गांव में जाना था तो थोडा सा बेफ्रिक्र थे। बुलटप्रूफ गाड़ी घर पर ही छोड़ दी और दूसरी गाड़ी से निकले। यही उनके जिन्दगी की सबसे बड़ी मिस्टेक थी।

कृष्णानंद राय के भाई राम नारायण राय ने इस घटना को लेकर बताया था कि टूर्नामेंट का उद्घाटन के बाद शाम करीब 4 बजे वह अपने गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राईवर मुन्ना राय, रमेश राय, श्याम शंकर राय, अखिलेश राय और शेष नाथ सिंह के साथ वह गांव की तरफ जा रहे थे।

भाई राम नारायण ने बताई ये बात

राम नारायण राय के अनुसार वो खुद दूसरे लोगों के साथ कृष्णानंद राय की गाड़ी के पीछे चल रहे थे। जब वो गांव पर जाते हैं। वो एक ग्रे रंग की गाड़ी सामने आकर अचानक रूकती है। उसमें से 7-8 लोग निकलते हैं और गोलियों की बौछार कर देते हैं। जिसमें विधायक समेत 7 लोगों की हत्या हो जाती है।

शरीर से निकले 67 गोली, सबसे सनसनीखेज घटना

कृष्णानंद राय के शारीर से 67 गोलियां निकली थी। ये घटना उत्तरप्रदेश के इतिहास में सबसे सनसनीखेज राजनीतिक हत्याओं में दर्ज होती है।


अब सवाल आपके मन में होगा कि आखिर क्यों ये हत्या कराइ गई थी। क्या वजह थी। तो इस वजह को जानने के लिए आपको थोड़ा सा और पीछे 2005 से पहले 2002 में चलना पड़ेगा। 2002 में गाजीपुर के मोहम्दाबाद सीट से कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को हराया था।

कृष्णानंद राय की हत्या को बनाया अपने जीवन का मकसद

कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी से इसे अपने जीवन का मकसद बना लिया कि कृष्णानंद राय को रस्ते से हटाना है। एक कहानी ये भी चलती है कि बृजेश सिंह जो मुख्तार के जानिदुश्मन में से एक थे। उन्हें कृष्णानंद राय ने सहयोग दे रखा था और मुख्तार को लगता था कि ये उनकी सियासी जमीन के खिसकने जैसा है। इसके लिहाजा ये बदला लिया गया।

जैसे अतीक ने भी अपने भाई अशरफ के लिए उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम दिया था। इसके बाद अंसारी बंधू कानून में उझ गए। अंसारी भाइयों के ताकत रुतबे के बल पर इस मामले को उलझाया गया। तमाम गवाह पलट गए। अफजाल अंसारी बार बार कहते रहे कि मीडिया गलत जानकारी दे रही है।

व्यक्ति एक नजरिया दो, अपराधी या हीरो

हालांकि मुख्तार के खिलाफ और भी कई मामले दर्ज थे। मुख्तार अंसारी की पहचान एक बाहुबली के तौर पर थी जिससे लोगों में दहशत फैला था। लेकिन अब वो कहानी खत्म हो गई। मुख़्तार को मानने वाले उन्हें हीरो और उन्हें ना पसंद करने वाले अपराधी के तौर पर देखते हैं। एक व्यक्ति जिसे लेकर दो नजरिया है। नजरिया आपका क्या है? ये हम आप पर छोड़ देते हैं। मुख्तार अंसारी की मौत नेचुरल है या फिर इसमें कोई साजिश है, सियासत है। ये सवाल भी हम आप पर छोड़ देते हैं लेकिन हमें लगा आपको ये कहानी सुनाते हैं। जहाँ से शुरुआत हुई माफिया मुख्तार अंसारी के पतन की और अब ये किस्सा इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

अब ना कृष्णानद राय है ना मुख्तार अंसारी है लेकिन पूर्वांचल के इतिहास में दोनों का नाम याद किया जाएगा। जब भी गैंगवार की, बाहुबली की बात होगी, चर्चा होगी तो उन्हें बेशक याद किया जाएगा और इन दोनों का नाम आता रहेगा।

Updated On 29 March 2024 1:25 PM GMT
Vipin Singh

Vipin Singh

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