- सिद्धपीठ के साथ पितरों के मोक्ष की कामना स्थली है विंध्य क्षेत्र, भगवान राम ने किया था पिंडदान

मीरजापुर, 29 सितम्बर (हि.स.)। काशी-प्रयाग के मध्य विंध्य क्षेत्र सिद्धपीठ के साथ पितरों के मोक्ष की कामना स्थली भी है। वैसे तो मां विंध्यवासिनी धाम 51 शक्तिपीठों में से एक है और विश्व प्रसिद्ध विंध्याचल धाम सिद्धपीठ के लिए जाना जाता है। वहीं, पितृपक्ष में पिंडदान कर पूर्वजों को तृप्त करने का भी बड़ा केंद्र है।

पितृपक्ष में रामगया घाट पर पिंडदान करने की पंरपरा अति प्राचीन है। मान्यता है कि भगवान राम ने त्रेता युग में वनवास के समय मां सीता के साथ विंध्य क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी के चरणों में शिवपुर स्थित मां गंगा के संगम तट पर अपने पितरों का तर्पण व पिंडदान किया था। इसके बाद से ही यहां पिंडदान की शुरुआत हुई है। यह वह स्थल है, जो रामगया घाट व छोटा गया के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जो गया नहीं जा सकता है, यदि वह यहां पर श्राद्ध और तर्पण करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पिंडदान व तर्पण के लिए यूपी-एमपी, बिहार व अन्य प्रांत से जुटेगी भीड़

पितृपक्ष के 16 दिनों तक भाद्रपद से अश्वनी की अमावस्या तिथि तक यहां निरंतर श्राद्ध कर्म के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन अमावस्या के दिन यह खास हो जाता है। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष के आखिरी दिन अमावस्या तिथि पर रामगया घाट पर पिंडदान करने वालों की भारी भीड़ लगती है। पितृपक्ष में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार व अन्य प्रांत के लोग पिंडदान व तर्पण के लिए यहां जुटते हैं। श्रद्धालु सबसे पहले गंगा स्नान करते हैं। मुंडन करानेके बाद पिंडदान का संस्कार पंडित से पूरा कराते हैं, फिर दान पुण्य करके वापस घर जाते हैं।

जीवन मरण के चक्र से मिलती है मुक्ति

रामगया घाट की महिमा का शास्त्रों में भी वर्णन किया गया है। आचार्य अगत्स्य द्विवेदी बताते हैं, आज भी गंगा के मध्य एक शिलापट्ट है जहां भगवान राम के पिंडदान करने के साक्ष्य मौजूद हैं। कहा जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

रामगया नाम से जाना जाने लगा शिवपुर

मान्यता है कि भगवान राम ने गुरु वशिष्ट के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ को मृत्युलोक से स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया के फल्गू नदी पर पिंडदान के लिए अयोध्या से निकलते हैं। इसके बाद उन्होंने पहला पिंडदान सरयू नदी पर, दूसरा पिंडदान प्रयाग के भारद्वाज आश्रम, तीसरा विंध्यधाम स्थित विंध्य पर्वत और मां गंगा के संगम स्थल पर किया। वहीं चौथा पिंडदान काशी और पांचवां गया में पहुंचकर किया। विंध्याचल स्थित शिवपुर घाट तभी से रामगया घाट से जाना जाने लगा, जिसे आज भी छोटी गया घाट कहा जाता है।

श्रीराम गमन को बयां करती है शिला व चरण चिन्ह

विंध्य क्षेत्र भगवान श्रीराम के चरणरज से धन्य हो चुका है। विंध्याचल स्थित रामगया घाट पर आज भी इसके प्रमाण मौजूद हैं, जो भगवान श्रीराम के गमन को खुद बयां करते हैं। विंध्याचल स्थित शिवपुर के रामगया घाट पर गंगा के बीच उभरी शिला व चरणों के चिह्न आदि इसके प्रमाण हैं। इस जगह का नाम भी उनके यहां से गमन का गवाही देता है।

विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार

विंध्याचल के शिवपुर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने आराध्य की स्थापना कर विंध्य क्षेत्र को शिव-शक्तिमय बना रखा है। भगवान श्रीराम ने पिंडदान के बाद पार्थिव शिवलिंग की स्थापना की, जिसे रामेश्वरम महादेव के नाम से जाना जाता है। शिवलिंग की विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति आज तक विशाल शिवलिंग को दोनों हाथों को फैलाकर आलिंगन नहीं कर सका है।

पौराणिक, धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है विंध्य क्षेत्र

रामगया घाट पौराणिक व धार्मिक के साथ पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। विंध्य पर्वत व मां गंगा के संगम स्थल पर एक शिलापट्ट पर मौजूद भगवान राम के पिंडदान करने के साक्ष्य व भगवान शिव के विशाल प्रतिमा के साथ आकर्षक बैकुंठ धाम भी है। विंध्य पर्वत श्रृंखला की प्राकृतिक फिजाएं, पहाड़ व कल-कल बहती जल धाराएं (झरना) लोगों को लुभाती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/दीपक/मोहित

Updated On 29 Sep 2023 2:05 PM GMT
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