खूंटी, 29 सितंबर (हि.स.)। सीखने की न कोई उम्र होती है और न ही ज्ञान का अंत होता है। हम जितना ज्ञान अर्जित करेंगे, उतना ही आगे बढ़ेंगे। सीखने से ही विकास का द्वार खुलता है। यह कहना है कर्रा प्रखंड के घासीबारी गांव की जागरूक महिला किसान सुनीता बारला का। आज वह महिला किसानों के लिए आईकॉन बन चुकी है।

सुनीता का परिवार कृषि पर ही आश्रित है। परिवार द्वारा सिर्फ धान की ही खेती की जाती थी, वह भी परंपरागत तरीके से। इससे परिवार की माली हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। ऐसी स्थिति में सुनीता ने कुछ करने की ठानी और 2017 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित आदिवासी सखी मंडल से जुड़ गयी।

सुनीता बारला बताती है कि गांव की कृषक सखी के माध्यम से उसे जेएचआईएमडीआई परियोजना के तहत ड्रिप खेती की जानकारी प्राप्त हुई। इसके बाद उसने घासीबारी ग्राम संगठन के माध्यम से पंजीकरण कराया। निबंधन कराने के बाद उसे एमडीआई सिस्टम मिल गयी। इसकी सहायता से सुनीता ने पहली बार टमाटर और दूसरी बार मिर्च की खेती की। बाद में सुनीता ने लोधमा सीएलएफ में प्रशिक्षण प्राप्त किया। इससे बारला को उन्नत कृषि की जानकारी मिली।

जानकारी मिलने के बाद सुनीता ने अप्रैल में फसल योजना तैयार करते हुए पत्तागोभी की खेती की शुरुआत की। उसने खेती करने के लिए 15 हजार का ऋण महिला समूह से प्राप्त किया और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से खेती शुरू की। खेती में कुल लागत 15,500 रुपये की आई। इतनी लागत से 3,700 किलोग्राम गोभी का उत्पादन हुआ। सुनीता बताती है कि उसने 20 रुपये प्रति की दर से पत्तागोभी बेचकर 74 हजार रुपये अर्जित किये। लागत घटाने के बाद सुनीता को लगभग 60 हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ।

सुनीता बताती है कि कृषि में रुचि और नया कुछ सीखने की ललक से ही वह आज अपनी पहचान उन्नत महिला किसान के रूप में बना पाई है। सुनीता ने बताया कि इस परियोजना से जुड़ने का मुख्य कारण है जेएसएलपीएस के माध्यम से क्षेत्र भ्रमण कार्यक्रम में टपक सिंचाई योजना के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना। साथ ही इससे जुड़े किसानों के फसल लगे खेतों को देखने और नया सीखने का अवसर मिला। सुनीता बताती है कि ड्रिप के माध्यम से खेती कर अपनी आजीविका को आगे बढ़ा रही है और उसकी आय में भी वृद्धि हो रही है।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल/चंद्र प्रकाश

Updated On 29 Sep 2023 1:31 PM GMT
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