हमीरपुर, 25 सितम्बर (हि.स.)। हमीरपुर समेत समूचे बुन्देलखंड और आसपास के इलाकों में पारथ्रेनियम हिस्टोरेसफोरस घास सेहत के लिए बड़ी ही खतरनाक साबित हो रही है। दशकों पहले हरित क्रांति के समय अमेरिका से गेहूं के साथ भारत आए इसके बीज से अस्थमा व त्वचा सम्बन्धी बीमारी ने दस्तक दे दी है। इन दिनों जहां भी नजर डालो, वहां पारथ्रेनियम घास लहलहा रही है। इसे उखाड़ फेंकने के बाद भी पारथ्रेनियम घास फिर से लहलहा जाती है।

पारेथ्रेनियम हिस्टोरेसफोरस घास को गाजर घास भी कहा जाता है। जिसे हमीरपुर ही नहीं पूरे देश के खेत और सार्वजनिक स्थानों पर लहलहाती देखी जा सकता है। यह घास पर्यावरण के लिए भी दुश्मन है। इसके दुष्प्रभाव से न सिर्फ फसलों पर असर पड़ता है बल्कि आम लोगों की सेहत पर भी बुरा असर देखा जा रहा है।

राजकीय कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत कुमार ने बताया कि गाजर घास को अमेरिकन घास भी कहा जाता है। फूल आने के बाद इस घास का फैलाव तेजी से बढ़ जाता है। बताया कि इसे उखाड़ने के बाद भी इस घास से निजात नहीं मिलती है। लेकिन घास को सामूहिक रूप से उखाड़कर खाद बनाई जाए तो यह फसलों के लिए बड़ी ही मुफीद साबित होती है।

डॉ.एसपी सोनकर ने बताया कि यह घास मानव और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। जैव विविधता और पर्यावरण के लिए भी यह घास दुश्मन है जो धीरे-धीरे दुष्प्रभाव छोड़ रही है। बताया कि पार्क, खेत, रेलवे लाइनों के किनारे के अलावा मार्गों व परती भूमि को भी इस घास ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। जिससे अब फसलें भी इस घास के दुष्प्रभाव से प्रभावित हो रही है।

डब्ल्यूएचओ के जागरण पहल के जागरूकता प्रभारी सत्येन्द्र अग्रवाल ने बताया कि बुन्देलखंड का शायद ही ऐसी कोई जगह बची हो जहां यह घास न दिखती हो। इस घास से लोग बीमार हो जाते हैं। उपनिदेशक कृषि हरीशंकर भार्गव ने बताया कि गाजर घास बारिश के मौसम में लहलहा जाती है। इससे निजात नहीं पाई जा सकती है।

70 साल पहले अमेरिका से सौगात में मिली पारथ्रेनियम घास

राजकीय कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ.प्रशांत कुमार ने बताया कि वर्ष 1954 में अमेरिका ने पीएल-480 व व्हीट कानून पास किया था जिसके बाद भारत ने अमेरिका से गेहूं का आयात किया था। अमेरिका से ही लाखों एमटी गेहूं के साथ पारथ्रेनियम (गाजर) घास के बीज भी भारत आ गए थे। बताया कि यहीं बीज आज किसानों और आम लोगों पर दुष्प्रभाव छोड़ रही है। इस घास को नष्ट करने के बाद भी ये फिर से लहलहा जाती है। बताया कि इस खतरनाक घास को लेकर गांव-गांव जागरूकता अभियान समय-समय पर चलाया जाता है।

अस्थमा और त्वचा सम्बन्धी की बीमारी की घास ने दी दस्तक

डॉ.विनय खरे ने बताया कि गाजर घास सेहत के लिए खतरनाक है। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए घर से निकलने पर मास्क का प्रयोग करना चाहिए। बताया कि इस घास के कारण हर रोज एलर्जी और अस्थमा के मरीजों की आमद होती है।

जिला होम्योपैथिक अस्पताल के डॉ.राहुल अस्थाना का कहना है कि गाजर घास के कारण श्वास सम्बन्धी बीमारी के ज्यादा मरीज आते है। इनमें एलर्जी और दमा के भी मरीज होते है जो होम्योपैथिक की दवाओं से ठीक भी हो जाते है। लेकिन इस पद्धति से इलाज करने पर मर्ज ठीक होने में कुछ समय जरूर लगता है।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/राजेश

Updated On 26 Sep 2023 12:05 AM GMT
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